हास्य-व्यंग्य : काले धन का हंटर
काले धन का हंटर सिर्फ कालाबाजारी करने वालों पर ही नहीं पड़ा है गृहमंत्रालयों पर भी पड़ा है । हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि जिसे कहना चाहिए आसमान से टपके और खजूर में ! मतलब तिजोरी में अटके अब ये तिजोरी मियां जी तो समझ रहे हैं कि अपनी ही ठिकाने से लगानी है मगर जल्दी ही घर में खुलासा होता है कि उनकी नाज़ुक सी प्यारी प्यारी सुकुमार भोली भाली पत्नियों ने भी तिजोरी के अंदर तिजोरी बना रखी है ।मतलब मियां जी चारो खाने चित्त जब माता जी, पत्नी जी ,बहन जी सब अपना अपना चोरी का माल आगे सरका रही हैं तो वंदा ये सोच रहा है कि जहर कहाँ है खाऊँ या गिनूँ, जहर नहीं नोट गिनूँ नोट, अरे भैया जहर भी गिनने की चीज़ है!!
वैसे इस समय बड़े बड़े धन कुबेरों को नानी याद आ गयी
कब आएंगे अच्छे दिन कब आएंगे अच्छे दिन ,फेंकू ने तो कुछ कर के ही नहीं दिया लो भैया आ गए अच्छे दिन सारा नकली नोट खुद ही बाज़ार से गायब और साथ में लोगों की चर्बी भी गायब । अब रखो चार चार गाड़ियां दस दस, मोबाइल । और करो नोटों की मालाओं से स्वागत दूल्हा ,समधी, समधिन से लेकर नेता और नेतायिन तक का । हर वंदा ये समझने में और साबित करने में लगा है कि सिर्फ वो ही होशियार है और वो जो कर रहा है उसे समझने की अक्ल सिर्फ उसी में है बाकी किसी में नहीं ।
जिन्हें जिन्हें कसक रहा है वोही वोही सुबक रहा है की पहले से नहीं बताया । ये भी कोई बात हुई भला ! मतलब तो ये निकल रहा है कि पहले बता देते तो कम से कम घर की नकदी ठिकाने से तो लगा लेते अरे कुछ भी करते बीबी को हीरे की अंगूठी दिला देते , जमाई को नयी कार दिला देते अरे नोट न सही व्यवहार ही कमा लेते बीबी भी फूली न समाती और जमाई तो बिटिया की दिन में चार बार आरती उतारता ,कम्बख्तों ने कुछ भी न करने दिया ।न माया मिली न राम वो हालत करके छोड़ी इस फेंकूं ने ।
नैतिकता और अच्छी बातें घर में बैठ करना निःसंदेह ही आज का फैशन है, अच्छा लगता है महानता के उदाहरण गढ़ना क्योंकि उसमें सिर्फ मुँह ही तो चलाना होता है ।
देश के जवान शहीद हुए तो देश का नुक्सान हुआ तो घर में बैठ कर संवेदना व्यक्त करने वाली जनता का असल स्वभाव क्या है इस काला बाजारी में वो भी सामने आ ही रहा है। महानता के स्टेटस अपडेट करते रहने वालों की देश भक्ति की भी पोल खुलती दिख रही है । देश का सैनिक अपनी जान की परवाह नहीं कर रहा है
और इधर हमारी संभ्रांत जनता निम्न वर्ग को तो रहने दीजिए वो ये सोच सोच के दुबली हो रही है कि भाई खायेंगे क्या ।
राजनीति अपनी नई मुद्दे के अलंकारों से खुद को अलिङ्कृत करके इतरा रही है । देश खुद के खोखले पन पे आंसू बहा रहा है नेता मुस्का रहा है क्योंकि उसे मुद्दों की चिंता है देश की नहीं । मीडिया लंबी लंबी पंक्तियां दिखा रहा है बुद्धिजीवी खुद को सबसे ज्यादा लुटा पिटा
और दीन दिखाने में व्यस्त है । फिर देश! अरे जाने दीजिए देश जिसे देखना होगा देखेगा घर का न सही बाहर का देखेगा ! देश में चाहें पाकिस्तान घुसा चला आये या चीन बुद्धिजीवी वर्ग पहले खुद की तो सोच ले ! देश का क्या है सामान नकली नोटों से भी मिलता है असली से भी । भाई बुद्धिजीवियों के पास असली करेंसी की पहचान है क्योंकि वो बुद्धिजीवी है और अगर देश में नकली नोट चल भी रहा है तो क्या ! बोट बिक रहा है तो क्या ! गरीब लुट रहा है तो क्या ! महंगाई बढ़ती जा रही है तो क्या! आतंक को बढ़ावा देने वाले पनप रहे हैं आतंक पनप रहा है तो क्या ।
कहना गलत नहीं होगा की अगर अंग्रेज सौ साल तक देश पर राज कर गए तो उसमें हम भारतीयों का भी तो कितना योगदान है ही न! है कि नहीं ! बाबू ! जिम्मेदार बनो,लाचार नहीं ,समझे की नहीं !