देहरादून के एक एटीएम का दृश्य और सामयिक चर्चायें
ओ३म्
कुछ देर पहले आज हमें देहरादून की पुरानी सब्जी मण्डी में कुछ सब्जियां, फल व अन्य सामान लेने जाना पड़ा। हम वांछित सामान क्रय करके तिलक रोड से बिन्दाल पुल को जोड़ने वाली सड़क से आ रहे थे। सायं 5.30 बजे का समय था। देहरादून के इस व्यस्ततम स्थान के एसबीआई के एटीएम पर लोगों को पैसे निकालते देखा। अधिकतम 30-35 लोगों की कतार लगी थी। सभी शान्त थे। देहरादून की जनता में हमें कहीं असन्तोष दिखाई नहीं दिया। लगता है कि जीवन सामान्य रूप से चल रहा है। बाजार भी सभी खुले हैं। हमने सब्जी मण्डी में गोल गप्पे वाले से पूछा की आपका कारोबार विगत दस दिनों में कैसा रहा। यह सज्जन वृद्ध हैं और हम विगत 7-8 वर्षों से इन्हें सब्जी मण्डी के आसपास अपनी चल-ठेली पर लोगों को गोलगप्पे व चाट खिलाते हुए देखते हैं। बहुत सज्जन एवं देशभक्त बन्धु है। धार्मिक बातें भी करते हैं। उन्होंने बताया कि उनका व्यवसाय इस बीच सामान्य रूप से चल रहा है। मोदी जी की उनसे प्रशंसा सुनकर भी हमें अच्छा लगा। काले धन के देश व जनता पर अच्छे-बुरे प्रभाव से अनभिज्ञ व्यक्ति भी यदि सरकार के साथ है तो यह देश के आम व्यक्तियों की सकारात्मक सोच को ही प्रस्तुत करता है जिसकी आज सुविधाभोगियों को अधिक आवश्यकता है।
हमें यह भी अनुभव हुआ कि हमारे जो भाई व बहिने देश भर में नोट बन्दी के बाद बैंक व एटीएम से पैसे निकालने में असुविधा अनुभव कर रहे हैं, उनकी असुविधा उचित होते हुए भी हमने टीवी पर उनके विचारों को सुना कि वह सभी न तो दुःखी हैं और न ही सरकार के फैसले से कुपित ही हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश व सभी लोग सरकार के निर्णय को सराह रहे हैं। आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी, हवाला आदि पर अंकुश लगने विषयक सामने आये परिणामों ने सरकार के निर्णय को सही सिद्ध किया है। हमें यह लगता है कि योग में आठ अंग होते हैं जिसमें एक अंग नियम है। नियम पांच हैं जिनमें से एक ‘‘तप” है। महर्षि दयानन्द ने तप के विषय में लिखा है कि धर्म अर्थात् निजी व सामाजिक कर्तव्यों के पालन में कष्टों के सहन करने को तप कहते हैं। आज योग को विश्व स्तर पर स्वीकृति मिल चुकी है। अतः देश हित में, चाहे अनचाहें, देशवासियों को बैंक व एटीएम से धन प्राप्त करने में तप करना पड़ रहा है। उनका यह तप बेकार नहीं जायेगा अपितु आगामी दिनों में व उनकी आने वाली पीढ़ियों को इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लाभ ही लाभ होना है। जब हम अपने कष्टों की बात करते हैं तो हमें लगता है कि हमें सेना के बहादुर जांबाज सैनिकों को जो सीमा पर पहरा दे रहे हैं और शत्रु देश के मंसूबों को भूमिसात करते हुए उन्हें धूल चटा रहे हैं, उन पर भी एक बार अवश्य सोचना चाहिये। यदि वह हमारे सुख चैन के लिए कष्ट उठा सकते है, अपनी जान गंवा सकते हैं, अपने बच्चों व परिवारों को अनाथ बना सकते हैं, तो हम एक दो दिन यदि लाइन में खड़े हो गये तो कौन सी बड़ी बात कर दी जबकि वर्तमान व आने वाली पीढ़ियों को इससे लाभ ही लाभ मिलना है।
हमने ऐसे मित्र भी देखें हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों से सम्बन्धित हैं। हमने उन्हें सकारात्मक बातें कम और नकारात्मक बातें करते अधिक सुना व देखा है। अभी कहीं कोई सरकार विरोधी मिथ्या समाचार आ जाये तो वह उसका प्रचार प्रसार करने में अपना बहुमुल्य समय और मस्तिष्क लगाते हैं। यह वह अपने हित व अहित को देखते हुए ही करते हैं जिसका उन्हें संवैधानिक अधिकार है। ऐसा इसलिये हो रहा है कि देश में विगत लम्बे समय से नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों यथा सत्य, धैर्य, अहिेसा, प्रेम, त्याग, सेवा, दूसरों की सहायता, संवेदना आदि में कमी आई है या यह कहें कि यह मानवीय गुण समाप्त व कुछ कम हो गये हैं। उन नैतिक गुणों के विकास व उन्नति के लिए प्रयास होना चाहिये परन्तु ऐसा कोई प्रयास दिखाई नहीं देता। यदि कोई करेगा तो धर्म के नाम से उसका विरोध किया जाता है और वोट बैंक की राजनीति के कारण राजनैतिक दल आत्म समर्पण कर देते हैं। स्कूलों में नैतिक शिक्षा एवं समाज के प्रतिष्ठित पुरुषों व नेताओं आदि के आचरण से ही देश में यह स्थिति आई है कि देश के करोड़ों लोगों को दो समय का भोजन भी सुलभ नहीं है। कोई भी राजा व नेता यदि भोजन कर रहा है और उसका देशवासी भूखा व दुःखी है तो यह उस राजा के लिए पाप, अपयश व भावी दुःख का वायस होता है। यह बात धर्म शास्त्रों में तो पढ़ने को मिलती है परन्तु आधुनिकता और पाश्चात्य व विदेशी मूल्यों ने कर्तव्य व मानवीय संवेदनाओं की भावनाओं को समाप्त वा नष्ट कर दिया है। इसी कारण आर्यसमाज के संस्थापक ने वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया था। वेद नैतिक नियमों व आध्यात्मिक मूल्यों के ईश्वर प्रदत्त ज्ञान व शिक्षायें है। उससे दूर जाने से ही मनुष्य व संसार का पतन हुआ है। उस पर लौटे बिना संसार का कल्याण नहीं हो सकता।
एक वैदिक प्रार्थना है ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भागभवेत्।’ वेदों के प्रचारक संगठन आर्यसमाज में इसे इस रूप में गाया जाता है ‘सबका भला करो भगवान, सब पर दया करो भगवान। सब पर कृपा करो भगवान, सबका सब विद्ध हो कल्याण, सबको दो वेदों का ज्ञान।’ इसी क्रम में यह प्रार्थना भी की जाती है ‘सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोय। यह अभिलाषा हम सबकी भगवन् पूरी होय।।‘ इस पर आधारित महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज का एक नियम बनाया है ‘मनुष्य को अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं होना चाहिये अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये।’ गायत्री मन्त्र में भी ईश्वर से हमें सदमार्ग, परोपकार, सेवा, दान, परदुःखकातर बनने आदि, के लिए बुद्धि को प्रेरणा करने की प्रार्थना की गई है। हमें लगता है कि सारा संसार गायत्री मंत्र की प्रार्थना को सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना मानता है परन्तु क्रियात्मक व आचरण की दृष्टि से उससे बहुत दूर है। देश व विश्व में एक श्लोक प्रचलित एवं सर्वमान्य है जिसके शब्द हैं ‘अवश्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुम्।’ इसका अर्थ है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने शुभ व अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही, हर हालत में, इस जन्म में नहीं तो परजन्म व भावी अनेक जन्मों में भोगना ही होगा। यह भी बता दें कि शास्त्रानुसार शुभ कर्मों का फल सुख व अशुभ कर्मों का फल दुःख होता है। आज हम पशु योनि में जो कुत्ता, बिल्ली, गाय, घोड़ा, भेड़, बकरी, मुर्गी, सूअर व सर्प आदि देख रहे हैं। यह अपने पूर्व मनुष्य जन्मों का फल ही भोग रहे हैं ऐसा ईश्वरीय ज्ञान वेद और वेद–ऋषियों का विचार व सिद्धान्त है।
आज टीवी पर यह भी बताया जा रहा है कि योग गुरु स्वामी रामदेव ने अपने नवीनतम ट्वीट में कहा है कि प्रधानमंत्री जी को आतंकवादियों एवं पालिटिकल माफियों से जान का खतरा है। यह चिन्ताजनक समाचार है। इसमें कहीं न कहीं कुछ तथ्य अवश्य हो सकता है। हम भी यदा कदा ऐसे नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं जिसका कारण आतंकवाद व माफियाओं की सोच व उनके द्वारा की जाने वाली हिंसक घटनायें हैं। हम ईश्वर से मोदी जी के जीवन की रक्षा, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करते हैं। इस विषय में और बहुत कुछ कहा जा सकता है परन्तु हम उसे सुधी व विवेकशील पाठकों कि हनण् छोड़ते हैं। हमारी यह भी इच्छा और प्रार्थना है कि कालेधन पर रोक के मोदी जी के प्रयासों को ईश्वर सफल करें जिससे इस देश के गरीबों व उनके बच्चों का भाग्य संवर सके। उर्दू में प्रचलित एक पंक्ति को लिख कर लेख को विराम देते हैं ‘तू खाक उसे करना चाहे जो तेरा बेड़ा पार करे। ’ ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य