ग़ज़ल
समुंदर में कई प्यासे उतर कर डूब जाते हैं
किसी की प्यास में सारे समुंदर डूब जाते हैं
कभी सैलाब आते हैं बड़ी ख़ामोशियों के साथ
खड़ी रहती हैं दीवारें मगर घर डूब जाते हैं
सहारा ज़िन्दगी देते हुए जब डगमगाती है
हम अपने ख़्वाब के दर्या में जा कर डूब जाते हैं
कभी इक ज़लज़ला ख़ुद हम से हो कर यूँ गुज़रता है
हमेशा के लिए हम अपने अंदर डूब जाते हैं
फिसलने पर सँभलने का हुनर आया नहीं हमको
किनारे तक पहुँचते हैं तो अक्सर डूब जाते हैं
— कृष्ण सुकुमार