क्या भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ रहा है ?
जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने देश के हर गरीबों के बैंक खाते की बात कही तो विरोधी के लिए यह महज एक हास्य का विषय था । सवाल था गरीब कमाता कितना है जो अपने खाते में रख पाए । लेकिन जनधन एक दूरदर्शी योजना था । जहाँ सरकार ने सिर्फ 1 रू में खाता खुलवाने की व्यवस्था ही नहीं की थी साथ 1 लाख का इंश्योरेंस भी मिल रहा था । बस यही इस योजना के सफलता की कुंजी बन गई । न सिर्फ 23 करोड़ खाते खुले साथ साथ 32000 करोड़ की राशि बैंक में जमा की गई । यह एक बड़ी सफलता थी लेकिन इसका सकारात्मक दूरगामी परिणाम तब होता जब खाताधारक को इंश्योरेंस के अलावा भी कुछ लाभ मिले । अतः सरकार ने गरीबो को जो पैसे बिचौलिए के द्वारा देने का प्रावधान था उसे कुछ हद तक खत्म कर सीधे खाताधारक के खाता में पहुंचा कर उन्हें अनावश्यक कमीशन से बचा लिया ।
अब इस नोट बंदी ने तो जैसे हर काले धन रखने वालो की नींद हराम कर रखी है । योजना इतनी सटीक है कि न वो बैंक में कैश जमा करवा पाए रहे है न ही पुराने 500 रू और 1000 रू के नोट का उपयोग भी भविष्य में कर पाएंगे । हर बार की तरह देश के भ्रष्ट जुगाड़ू लोग , अपने काले धन को रेलवे टिकट खरीद कर , सोना खरीद कर सफेद करने की कोशिश करने लगे तो सरकार ने तत्काल कदम उठाते हुए यह ऐलान कर दिया कि रेलवे टिकट कौंसिल करवाने पर सिर्फ 5000 रू कैश वापस होंगे और बाकी अकाउंट के माध्यम से मिलेगा । नोट बंदी के ऐलान के बाद सोना खरीदने वाले तथा सभी जनधन खाते में अपनी काली कमाई डालने वाले जांच के घेरे में होंगे, तो कहने में अतिश्योक्ति नही कि सरकार ने देश के भ्रष्ट तंत्र के नाक में नकेल डालने का काम किया है तथा इसमे सरकार सफल होती भी दिख रही है ।
प्रधानमंत्री जी ने अपने जापान दौरे पर भी अपने भाषण में यह संकेत दिया है कि काले धन के खिलाफ यह सरकार का आखिरी कदम नहीं है । सरकार के पास निश्चित रूप से कोई योजना है जो फिर से भ्रष्ट लोगों को काला धन पुनः संचय करने से रोकेगी । ऐसे में कई बात विचार करने योग्य है जो विपक्ष भी पूछ रहा है । जो सर्वथा उचित है । सबसे पहले जो चिंता का विषय है कि 1000 रू समाप्त कर 2000रू के चलन से क्या काला धन रखने वालो को और मदद नहीं मिलेगी ? उत्तर यदि हाँ है तो आखिर सरकार क्या कदम उठा सकती है जिससे जो पहले हुआ वह पुनः दोहराया नहीं जा सके और भ्रष्टतंत्र काला धन पुनः संचित ही न कर पाए ।
अगर सरकार के द्वारा लिया गया पहले कदम से अब तक के कदम का अवलोकन करे । चाहे वो जनधन योजना हो , आधार कार्ड को अकाउंट से जोड़ने की बात हो या फिर ये नोट बंदी की बात हो , बहुत स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री जी देश को को कैशलेस अर्थ व्यवस्था की तरफ ले जाना चाहते है । लेकिन फिर सवाल उठता है कि ये कैशलेस अर्थव्यवस्था है क्या ? और इससे कैसे काला धन संचय को रोकने मे मदद मिलेगी ? क्या ये भारत जैसे देश में संभव है ?
कैशलेस को अगर बिल्कुल सीधे शब्दों में परिभाषित करे तो कहेंगे कि वैसी अर्थव्यवस्था जिसमे पैसों का लेन देन नगदी न होकर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हो , जैसे डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड , नेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल किया जाए वही दूसरी तरफ बड़े पेमेंट हेतु बैक की एन ई एफ टी ( नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर ) और आर टी जी एस ( रियल टाईम ग्रौस सेटलमेंट) जैसी सुविधाओ का इस्तेमाल किया जाए । छोटी मोदी खरीदारी तथा किसी प्रकार का बिल पेमेंट पेटियम जैसे साइट्स से किया जाए । अगर ऐसी व्यवस्था की तरफ हम अग्रसर होते है तो कोई भी लेन देन या खरीद बिक्री भी नगदी न होकर इलेक्ट्रॉनिक होगा । ऐसी स्थिति एक आदर्श स्थिति होगी कुछ छूपा या काला नहीं होगा । अकाउंट के हर एक ट्रांजैक्शन की जानकारी बैंक और सरकार के पास बहुत आसानी से आती रहेगी फिर काला धन की समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाएगी ।
लेकिन यह एक आदर्श स्थिति है । समझने की जरूरत यह भी है कि क्या हमारा देश जहाँ अधिक्तर लोग गाँव में रहते है । अशिक्षा भी एक बहुत बड़ी समस्या है तो क्या कैशलेस के सपना भारत में देखा जा सकता है ?
आज विश्व में कुछ ही ऐसे देश है जो कैशलेस अर्थव्यवस्था के करीब पहुंच पाए है जिसमे स्वीडन पहले नम्बर पर है जहाँ तकरीबन 80 फीसदी आर्थिक कार्य कैशलेस होता है । लेकिन क्या भारत में यह संभव है ?
कैशलेस अर्थव्यवस्था हेतु कुछ जो आवश्यक शर्त जनता हेतु है वह है मोबाईल की सुविधा , इंटरनेट की सुविधा, हर छोटे और बड़े विक्रेता के पास स्वाइप मशीन की सुविधा और सबसे उपर आम जनता को कैशलेस व्यवस्था हेतु जागरूक करना , शिक्षित करना तथा इसकी विश्वसनीयता बढाना । अगर एक शब्द में कहे तो देश का डिजिटलिकरण करना होगा ।
देश में पहले ही मोबाइल क्रांति आ चुकी गहै , देश में मोबाइल उपयोग करने वालो की संख्या तकरीबन 100 करोड़ से ज्यादा है ।जागरूकता के साथ यह संख्या और भी बढाई जा सकती है। छोटे छोटे शहर के सुपर मार्केट तक में आज स्वाइप मशीन की उपलब्धता है । इससे गाँव तक तथा हर एक छोटे बड़े विक्रेता तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती होगी । लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या है वो है इंटरनेट की उपलब्धता , लोगो की अशिक्षा ,इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से खरीद बिक्री पर विश्वसनीयता और छोटे शहर तथा गाँव तक इसकी जागरूकता फैलाना ।
निकट कुछ वर्षो में भले ही यह संभव होता नहीं दिख रहा हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस बुद्धिमत्ता और संकल्प से आर्थिक सुधार के निर्णय केन्द्र सरकार द्वारा लिए जा रहे है कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि भारत बहुत तेजी से कैशलेस अर्थव्यवस्था तरफ बढ रहा है ।
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली “