लघुकथा : साहब का पिल्ला
” आज खूब रगड़- रगड़ कर हाथ धो रहे हैं, क्या बात है ?” पत्नी ने रतन बाबू से पूछा।
” हां। साहब के बंगले में गया था। उनके पिल्ले का जन्मदिन था।
” अच्छा ? पिल्ले का जन्मदिन ?”
” हां। बड़े नोट बंद होने के बावजूद खूब धूमधाम से पिल्ले का जन्मदिन मनाया गया।”
” अच्छा ? तो हाथ क्यों रगड़े डाल रहे हैं ?”
” बड़े- बड़े अफसर पिल्ले को दुलार रहे थे। मैंने भी उसे पुचकारा तो ससुर ने आकर हाथ चाट लिया, इसलिए रगड़ रहा हूं।”
” जब इतना मन घिनघिनाता है तो न चटवाते।”
” कैसे न चटवाता ? कल ऑफिस में साहब के सामने खड़ा भी होना है।”
— राजकुमार धर द्विवेदी