कविता

दहेज

सपने संजोये पलको तले
पलके ये भर आई क्यों?
मेहंदी लगी हल्दी चढ़ी
डोली उठ नही पाई क्यों?

दहेज़ की इस ज्वाला में
हुई नही विदाई क्यों?
हाथ जोड़े शीश झुकाये
दया नही उन्हें आई क्यों?

इन दहेज़ के निर्लज्जौ को
दौलत ही रास आई क्यों?
नारी हूँ मै कमजोर नही
इनके घर मैं जाऊ क्यों?

हाट में बिकते जिनके बेटे
उनकी बहू कहाऊ क्यों?
इनके खिलाफ उठे आवाज
अपनी मैं दवाऊ क्यों?

इनको सजा दिला करके
समाज सुधार न कराऊ क्यों?
माता पिता की सेवा कर
पुत्र का श्रेय न पाऊ क्यों?

दीपिका गुप्ता ‘कोयल’

दीपिका गुप्ता 'कोयल'

खिरकिया, जिला-हरदा (म.प्र.) email: [email protected]