मुझे नजर न लगेगी किसी की
मुझें नजर न लगेगी किसी की
मेरी माँ मुझको काजल लगाती
तू है बहुत प्यारा सुन्दर सलोना
मुझें अपनी आँखों का तारा बताती
मुझें क्या पसंद है पता है उसे सब
चाहूँ मैं जो भी मुझको खिलाती
पलना में झूलूँ गुड़िया से खेलूँ
परियो की गाथा सुना के सुलाती
बचपन कहाँ गुम हुआ है जी मेरा
बचपन की यादे बहुत है सताती
कक्षा में अव्वल आऊँगा अब तो
मेरी माँ गुरु बन के मुझको पढ़ाती
मुझें खुद से ज्यादा जानती है माँ
मुझें सही राहे दिखाकर चलाती
माँ से बड़ा नही है कोई जग में
घर को मेरी माँ जन्नत बनाती
नन्हा पर आशीष माँ का सदा है
सपने कैसे पूरे करूँ मैं सीखाती
— शिवेश अग्रवाल ”नन्हाकवि”