लघुकथा- मूक रिश्ता
एकदूसरे को देखा. सब याद आ गया.
ऊन दोनों के पिता नही चाहते थे कि उन का प्रेम परवान चढ़े. विजातीय शादी हो. इसलिए लड़के को पढ़ने अमेरिका भेज दिया गया. इधर लड़की की शादी कर दी. पुराना जमाना था. वह विरोध नहीं कर पाई. जब लडके को मालूम हुआ तो उस ने ताजिंदगी कुंवारे रहने का फैसला कर लिया. मगर, नियति की कुछ और मंजूर था. वह भारत घुमने आया तो उस की मुलाकात लड़की से हो गई. तब उसे पता चला कि उस की जवानी की प्रेमिका का पति चल बसा. सभी बच्चे विदेश में जा कर जम गए. मगर वह उन के साथ न जा पाई.
वह अब अकेली रह गई थी. वह आज भी टहलने उसी जगह आती थी. जहाँ अक्सर वे मिला करते थे. इसलिए उस की लड़की से मुलाकात हो गई. उन्हों ने खूब बातें कीं. और बातें करतेकरते उसी खम्बे के पास चले आए जैसे जवानी में आ कर खड़े हुआ करते थे .
कहने को बहुत कुछ था. मगर जवानी की तरह मुंह खुल नहीं पा रहा था . उसी खम्बे की आड़ में एकदूसरे को चोरिचोरी देखती आँखें कह रही थी, “ मै तुम से बहुत प्यार करती हूँ.”
जिस का जवाब चेहरे की झुरियों के बीच खींच आई मुस्कराहट दे रही थी, “ तब तो हमें एक रिश्ते में बंध जाना चाहिए.”