“कुंडलिया”
चलती रही है जिंदगी, मानक माफक रैन
जो मिला जैसे मिला, माना निधि व चैन
माना निधि व चैन, पहुँच पतझड़ हरियाली
चलें बिना परवाह, दीप होली खुशियाली
कह गौतम चितलाय, धधक मन आशा पलती
नई सुबह इठलाय, समय पर साथ न चलती॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी