ग़ज़ल
असर दिखा है जमाने में खास बातों का ।
मिटा है खूब खज़ाना रईश जादों का ।।
है फ़िक्र उस को नसीहत रुला गई यारों ।
गया है चैन , सुना है तमाम रातों का ।।
लुटे थे लोग जो अपने गरीबखानों से ।
हिसाब मांग रहे है वही हजारों का ।।
न पूछिए की चुनावों में हाल क्या होगा ।
बड़ा अजीब नज़ारा है इन सितारों का ।।
सफ़ेद पोश से पर्दा हटा गया कोई ।
पता चला है लुटेरों के हर ठिकानों का ।।
गरीब हक़ का निवाला पचा नही सकते ।
दिया जबाब है तुझको तेरे फसानों का ।।
बिका टिकट तो वो दूकान खोल के बैठी।
यकीन बेच के आयी है हुक्मरानों का ।।
गए हैं भूल मनाना वो जन्मदिन अपना ।
बड़ा हिसाब भी देना है बन्द खातों का ।।
जो पत्थरों से मदरसों पे जुल्म ढाते थे ।
बने शिकार वही मुल्क के निशानों का ।।
तमाम चोर हुए एक जुट मुसीबत में ।
बुरा हुआ है यहां हाल सख्त थानों का ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी