ग़ज़ल
ये सिलसिले भी इश्क के हमसे खफा मिले ।
अक्सर मेरे रकीब जमानत रिहा मिले ।।
किस्मत की बेवफाई जरा देखिये हुजूर ।
जितने सनम मिले सभी शादी सुदा मिले ।।
जब भी उठे नकाब हिदायत के नाम पर ।
क्यों लोग आईने में हक़ीक़त ज़ुदा मिले ।।
चर्चा , लिहाज़ उम्र का , उसको नही रहा ।
कुछ तितलियों के फेर में अक्सर फ़िदा मिले।।
अक्सर हबस के नाम पे मरता है आदमी ।
मासूम सी अदा में ढ़ले बेवफा मिले ।।
कहना पड़ा है आज उसे बार बार यह ।
वाजिब कहाँ है बात मुझे ही सजा मिले ।।
इतना तो मानता था हमारी भी बात को ।
कुछ तो जरूर था जो कई मर्तबा मिले ।।
बिकता यहां ज़मीर ये हिन्दोस्तान है ।
बिकने लगे हैं लोग कहीं कुछ नफ़ा मिले ।।
बाजार में सजे हैं नए जिस्म आजकल।
उसको खबर नही है तिजारत में क्या मिले ।।
बदला किया वो यार फ़क़त इन्तजार में ।
शायद किसी नसीब में कुछ तो लिखा मिले ।।
—-नवीन मणि त्रिपाठी