चार मुक्तक
1
भूकम्प, बाढ, आपदाओं से सबका दिल दहल जाता है.
अकर्मण्यता से अकसर मौका हाथ से निकल जाता है.
हवा के इक झौंके में ढह’ जाते हैं ताश के महल ‘आकुल’,
जो कुछ कर गुजरता है समय उनका भाग्य बदल जाता है.
2
बैठने से बचिए कुछ भी कर गुजर जाइये.
सोचना क्या चलिए कुछ भी कर गुजर जाइये.
कल की चिन्ता छोडि़ये दिल्ली दूर नहीं ‘आकुल’,
आज मुट्ठी में भरिए कुछ भी कर गुजर जाइए.
3
निर्मलता चंदन से नहीं नहाने से आती है.
निर्ममता क्रंदन से नहीं सताने से आती है.
निर्धनता स्कंदन से आई है सदा ‘आकुल’,
निर्भरता बंधन से नहीं बचाने से आती है.
(स्कंदन- शोषण.)
4
आशा, नेह, विश्वास, आस्था, श्रद्धा, प्रेम और यारी.
स्वामिभक्ति, सौहार्द, समर्पण की है यह भूमि हमारी.
वीरों और’ वीरांगनाओं की भूमि है अपना भारत,
वेदों से अभिमंत्रित, रक्षित, सुसंस्कृत भूमि हमारी.