मुक्तक/दोहा

दोहे

आठ नवम्बर सोलह को ‘ किया है वज्र प्रहार ।
बेईमानों और चोरों का ‘ हो गया बंटाधार ।।

जनता देखो खुश भई ‘ करने लगी बखान ।
अब अच्छे दिन आएंगे ‘ लिया देश ने ठान ।।

देश कतारों में लगा ‘ मन ही मन हर्षाय ।
पर मुद्रा ही थी नहीं ‘ मुद्रा कैसे पाय ।।

कर जुगाड़ सब बैठ गए ‘ नेता अफसर शेठ ।
आम लोग सब रह गए ‘ देखो ख़ाली पेट ।।

दिन सत्रह हैं बीत गए ‘ मुद्रा हाथ न आय ।
बीन माया सब शून्य है ‘ कोई नहीं उपाय ।।

कुछ साँसे हैं छुट गयी ‘ कुछ की टूटी आस ।
देशभक्ति है गौण हुयी ‘ जनता भई नीराश ।।

जनता के दुःख से दुखी ‘ नेता शोर मचाय ।
“नोटबंदी वापस करों ‘ दूजा नहीं उपाय ।।

नोट बंदी तो ठीक है ‘ करते हमें बताय ।
ज्यों अपना घर भर लिए ‘ हम भी भरते धाय ।।”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।