नोटबंदी पर विपक्ष का भारत बंद: मुद्दा या मुद्दे की तालाश
पीछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक चुटकुला बहुत वायरल है कि पहले ऐसा होता था कि जनता किसी मुद्दे पर नाराज हो तो दंगा करने पर उतारू हो जाती थी और हमारे नेता गण उनसे शांति की अपील करते थे । मगर देश में पहली बार ऐसा हो रहा कि कुछ विपक्षी नेतागण को दंगे का इंतजार है लेकिन जनता ने मुश्किल का सामना करते हुए भी धैर्य धारण कर रखा है । यूँ तो इसे हास्य परिहास हेतु किसी ने लिखा होगा किन्तु आज के संदर्भ में अगर इसे देखे तो एकदम सटीक बैठती है ।
भारत सरकार का नोटबंदी का फैसला बेहद साहसी फैसला था जिसे लेने का निर्णय नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री ही ले सकता था क्योकि इससे जहाँ एक ओर आम जनता से किया काला धन बाहर निकालने वाले वादे को प्रधानमंत्री पुरा करने वाले थे वही दूसरी तरफ देश का एक तबका जो खुद को धनकुबेर समझता था एक ही झटके में नाराज होने वाला था । इसके चंगुल में कौन कौन फसेंगे कहना मुश्किल था और आज भी कुछ समय बाद जब खाताधारक के खाता में जमा हुए राशि के स्रोत की जांच होगी तब ही पता चल पाएगा ।
लेकिन नोटबंदी के सारे घटनाक्रम को बारीकी से देखे तो विपक्ष की हालत साँप छछूंदर जैसी है । न विपक्ष मुखर हो विरोध ही कर पा रहा है और न ही केन्द्र सरकार के इस साहसी फैसले पर शाबाशी ही दे पा रहा है । इस शानदार फैसले के बाद केन्द्र सरकार से एक ही चुक हो सकती थी, जो हुई भी , इस सारी प्रक्रिया का कार्यान्वयन का तरीका तय करना , शुरूआत से ही पुराने नोट को जमा करने और बदलने हेतु बैंकों में लम्बी लम्बी कतारे लगने लगी । ए टी एम में भी रूपए के निकासी हेतु जनता को बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा लेकिन प्रधानमंत्री जी ने लगातार हालात का जायजा लेते हुए हर दिन नियम में बदलाव किये जिससे धीरे धीरे स्थति समान्य होने की ओर बढ रही है । अब एक यही मौका था जब विपक्ष अपने तीर चला सकता था लेकिन विपक्ष की हालत ऐसी है कि पुरजोर कोशिश और तीखे बयान के बावजूद जनता का जबरदस्त समर्थन नहीं मिल पा रहा है । जनता जहाँ एक ओर मुश्किलों का सामना कर के भी देश के भविष्य हेतु बेहद खुश है जिसका पता लगातार हो रहे अलग अलग सर्वे से भी चल रहा है । विपक्ष खुद भी इस मुद्दे पर बिखरा हुआ प्रतीत होता है । जहाँ बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने केन्द्र सरकार की इस कदम की न सिर्फ सराहना की है बल्कि उन्होंने प्रधानमंत्री जी को ऐसा एक और साहसी कदम बेनामी प्रॉपर्टीज के संबंध में लेने का आग्रह किया है । दूसरी ओर इसी सरकार के घटक दल राजद सुप्रीमो लालू यादव नितीश कुमार के इस वक्तव्य से नाराज बताए जाते है । देश के प्रमुख विपक्षी दल यह तय नहीं कर पा रहे इस विषय पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए । शुरूआत में जहाँ इनके नेतागण इस कदम को प्रधानमंत्री जी का सही फैसला बता रहे थे वही गुजरते दिन के साथ धीरे धीरे कांग्रेस को यह महसूस हुआ कि शायद वो जनता को आ रही मुश्किल को भुना सकती है । कांग्रेस मुखर हो विरोध करने लगी लेकिन पुरे घटना क्रम में कभी भी ऐसा नहीं लगा की देश की जनता इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़ी है ।
इस मुद्दे पर शुरूआत से ही अगर किसी ने मुखर हो विरोध किया तो वो थी पश्चिम बंगाल की मुख्यम॔त्री ममता बनर्जी , पश्चिम बंगाल पर हासिय पर खड़ी विपक्षी वाममोर्चा , दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बसपा नेत्री मायावती जी, बिहार प्रदेश सरकार के प्रमुख घटक राजद और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार
अब विपक्ष के इन सभी दलों के विरोध का विश्लेषण करे तो समझ आता है कि इस मुद्दे पर विपक्ष की एकजुटता का प्रयाप्त आभाव है । जहाँ एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का इस फैसले पर खुल कर समर्थन कर रहे है। उनके सरकार के प्रमुख घटक राजद कुछ भी कहने से बच रहा है या यूँ कहे की खुल कर विरोध नहीं दर्ज करवा पा रहा अन्यथा लालु जी जिस तरह के विरोध के लिए जाने जाते है अब तक तो सर पर आसमान उठा लिया होता । उत्तर प्रदेश के सपा सरकार की बात करे तो जहाँ प्रमुख विपक्षी दल बसपा नेत्री 500 और 1000 रू के पुराने नोट को रोल बैक करने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ सपा का विरोध सिर्फ जनता को हो रहे मुश्किल तक ही सीमित है । सपा इस प्रकार भ्रमित है कि अखिलेश जी एक विवादास्पद बयान देने से नहीं चुके कि कभी कभी काला धन अर्थव्यवस्था का आधार बन जाता है ।
अरविंद केजरीवाल का विरोध हर बार की तरह सिर्फ नरेन्द्र मोदी तक ही सीमित है और कहने में अतिश्योक्ति नहीं कि हर दिन किसी न किसी पर आरोप लगाने वाले बयान से उनकी बात की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में रहती है ।
अगर इस फैसले के पुरजोर विरोध की बात करे तो अकेली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री शुरूआत से ही न सिर्फ नोट बंदी की प्रक्रिया में जनता को हो रही मुश्किलों का विरोध किया है अपितु नोटबंदी के इस फैसले पर शुरुआत से विरोध में मुखर और अटल रहीं है । इस मुद्दे पर उन्हें विपक्षी वाममोर्चा का भी साथ मिला है जबकि यह बहुत बड़ी विडंबना है कि कम्युनिस्ट और उसके सभी घटक यानि वाममोर्चा का अस्तित्व ही पूंजिवाद का विरोध रहा है ।
इस सभी घटनाक्रम के बीच विपक्ष ने 28 नवंबर को भारत बंद का ऐलान किया है लेकिन इसमे भी विरोध के तरीके पर भ्रम की स्थिति है । जहाँ एक ओर बिहार में नितीश कुमार द्वारा नोटबंदी के फैसले का पूर्ण समर्थन ने राजद के हाथ पाँव बांध दिए और उसका भारत बंद को मुखर हो समर्थन करना मुश्किल ही लग रहा है ।
चुनावी हालात को देखते हुए मायावती और मुलायम सिंह का भी एकजुट हो विरोध में शामिल होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है क्योकि मायावती ने मुलायम सिंह यादव को संन्यास ले लेना चाहिए जैसा बयान देकर हमला तेज कर दिया है ।
पश्चिम बंगाल ही देश का एक ऐसा हिस्सा है जहाँ लग रहा था कि पहली बार कांग्रेस , वाममोर्चा और तृणमूल सब नोटबंदी के विरोध में एक साथ आ सकते है लेकिन अगर इन तोनों घटक के भारत बंद पर अलग अलग बयान का विश्लेषण करे तो जहाँ ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी तरह के बंद का विरोध करती है और 28 नवंबर को तृणमूल सिर्फ आक्रोश दिवस के रूप में मनाएगी, कांग्रेस ने बंद के आह्वान का समर्थन करते हुए आपात सेवा , एक टी एम और बैंक को बंद में शामिल नहीं करने की बात कर रही है वही वाममोर्चा अब भी नोटबंदी के मुद्दे पर सम्पूर्ण बंद का आह्वान किया है ।
हालात का विश्लेषण करने के बाद कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की अब तक विपक्ष जनता के मन को पढने में असफल रही है । जहाँ एक ओर नोटबंदी का मामला विपक्ष को एक मुद्दा मिलता नजर आ रहा है वहीं हर दल इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष का कैसे , और कितना विरोध किया जाए तय नहीं कर पा रहे है और भ्रम की हालत में है ।
कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि जबसे नरेन्द्र मोदी की सरकार भारी बहुमत से सत्ता में आई है , विपक्ष को उसके खिलाफ एक मजबूत मुद्दे की तालाश है । चाहे शुरूआती दौर में दाल के बढते मूल्य का मामला हो , दलित नरूला के आत्म हत्या का मामला हो , बड़े बड़े साहित्यकार द्वारा असहिष्णुता को मुद्दा बना पुरस्कार लौटाने का मामला हो , जे एन यूँ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उठा विवाद हो , आतंकवादी हमले का मुद्दा हो , सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा हो या तत्कालीन नोटबंदी का मुद्दा क्यों न हो , विपक्ष पुरजोर कोशिश कर रहा है कि सत्ताधारी दल के खिलाफ कोई ऐसा मुद्दा मिले जिससे उनके विरोध को थोड़ी धार मिल सके लेकिन हर बार विपक्षी मुद्दा तो बनाने की पुरजोर कोशिश होती है लेकिन प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व के सामने वे बौने पड़ जाते है और प्रतिफल सिफर ही होता है ।
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली “