कविता

“आदमी”

आदमी हँस रहा है, आदमी डंस रहा है
आदमी गा रहा है, आदमी खा रहा है
जा रहा है आदमी, छा रहा है आदमी
आदमी जी रहा है, आदमी मर रहा है।।

आदमी बन रहा है, आदमी तन रहा है
आदमी धुन रहा है, आदमी गुन रहा है
कुढ़ रहा है आदमी, चिढ़ रहा है आदमी
आदमी पिस रहा है, आदमी घिस रहा है।।

आदमी दिख रहा है, आदमी बिक रहा है
आदमी तक रहा है, आदमी बक रहा है
लड़ रहा है आदमी, अड़ रहा है आदमी
आदमी उड़ रहा है, आदमी पड़ रहा है।।

आदमी गिन रहा है, आदमी बिन रहा है
आदमी सड़ रहा है, आदमी गड़ रहा है
रुक रहा है आदमी, फुंक रहा है आदमी
आदमी सुन रहा है, आदमी कह रहा है।।

वाह रे आदमी

सब कुछ बना दिया! देवता, दानव, मानव

अब किसकी तलास है, किसमें मिठास है

परपीड़न, दमन किस कल्पना का मानव

आदमी तो आदमी है, आदमी से आदमी है।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ