ग़ज़ल : हिंदुस्तान रखता हूँ
आदत में संस्कार दिल में हिन्दुस्तान रखता हूँ
कफ़न नसीब हो तिरंगे का ये अरमान रखता हूँ !!
ऐ रक़ीब देखना भी नहीं मेरे देश की सरहदों को
सीना आर पार कर दूंगा मैं तीर-कमान रखता हूँ !!
तेरे आदतों में शुमार होगा वादों से मुकर जाना
मुझे फ़क्र है मैं अपने हिस्से में ईमान रखता हूँ !!
मेरे सफ़ेद बालों को देखके कमजोर ना समझना
कलेजे में सुनामी और दिल को जवान रखता हूँ !!
छोटा समझ करके हर बार हमने माफ़ कर दिया
वर्ना नक़्शे से मिट जायेगा वो फरमान रखता हूँ
तुम्हारे मदरसों में रखते हो तुम मौत का सामान
मेरे मन के मंदिर में आस्था का सामान रखता हूँ !!
जब तक जिन्दा हूँ भारत माँ का पहरेदार रहूँगा
जिंदगी के वास्ते हथेली पर शमशान रखता हूँ !!
— बेख़बर देहलवी