गीत : विपक्षी चाल है
बार बार मन मेरा ये कर रहा सवाल है।
किसको है आजादी मिली, कौन खुशहाल है।
नेता हैं विधाता बना, जनता फटे हाल है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।1।
देश का दर्पण दिल्ली, दुःख, दुर्दिन, द्वंदो से भरा हुआ।
नारी नय़न नीर पूरित, नर निर्लज्ज वासना भरा हुआ।
सुनसान सड़क या घर आंगन हर ओर नराधम मरा हुआ।
कौन कहे अब देश दुर्दशा, जब राजधानी का यह हाल है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।2।
संसद हो या सड़क यहाँ हर तरफ बवाल है।
सदनों से आती जूते-चप्पलों की ताल है।
बाहुबलियों की है रखैल बनी राजनीति,
बुद्धिजीवी घर में बैठा खाए रोटी दाल है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।3।
इस विशाल राष्ट्र की समस्या भी विशाल है।
काला धन, भ्रष्टाचार बन चुका अब काल है।
हत्या, लूट, चोरी, हेराफेरी अब आम है।
घोटाला, हवाला वाली खबरें तमाम है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।4।
देश का किसान बीज-बूँद को मोहाल है।
साल दर साल ये तो हो रहा कंगाल है।
माल वाले माल पाके होते मालामाल है।
वोट से ज्यादा किसे इनका खयाल है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।।
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खुश होता जब जग मे ऊँचा होता भारत भाल है।
पर दामिनी के दारूण पुकार पर उठते कई सवाल है।
देश द्रोह से कम ना लगता मंगल तक जाना अपना…
जब देश की लाखों जनता, बेबस, बेघर,बदहाल है।
और, कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।5।
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जाति धर्म की ज्वाला जब जलता देश विशाल है।
नेता, अभिनेता, ज्ञाता सब, बढ़ के ठोके ताल है।
कोई मांस की दावत देता, कोई नोचें खाल है।
पूछे गईया ‘सतरस बाबा’, ये कैसा धर्म निरपेक्ष बवाल है
और कह रहे है मंत्री जी कि ये विपक्षी चाल है।।
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— सौरभ सतर्ष