ग़ज़ल
नहीं गर तेरे स्तर का हूँ ।
बतला दो, तो फिर मैं क्या हूँ ?,
तुम विद्युत क्रत्रिम प्रकाश हो
मैं पूनम की चन्द्र प्रभा हूँ ।
तुम महलों का राजरोग हो
मैं फुटपाथ की अमिट छुधा हूँ ।
तुम उद्घोष हो एक कर्ण कटु
मैं विरही की गीत व्यथा हूँ ।
तुम कल्पनामयी कविता हो
मैं इक सच्ची आत्मकथा हूँ ।
तुम हो अमरबेल चमकीली
मैं बसन्त की एक लता हूँ ।
दिया है गरल, धरा अम्बर को
शहर हो तुम, मैं ग्राम सुधा हूँ