ग़ज़ल
बहुत मनाया, वो न माने, चले गये ।
तोड़ के सारे ताने बाने चले गये ।
दादी के किस्सों मे सच्चे लगते थे,
बचपन के वो राजघराने चले गये ।
जात, पाँत, धन, दौलत, शोहरत, का अन्तर,
बचपन के सब मीत पुराने चले गये ।
जिनके खातिर खोले दिल के दरवाजे
वो स्वप्नों के महल ढहाने चले गये ।
नीड़ बनायी, मेहनत से पाला पोसा
पंख उगे, हो गये सयाने चले गये ।
— दिवाकर दत्त त्रिपाठी