ग़ज़ल
सफ़र घर वापसी का है,
मजे का है खुशी का है
संभल कर नाव से उतरें.
किनारा ये नदी का है
मुसाफिर हूं हमारा साथ,
घड़ी बस दो घड़ी का है,
हमारा दिल हमारा कब,
हमारा दिल किसी का है,
जहॉ है बस यहॉ कुछ का,
ये कहने को सभी का है,
तुम्हारे ऐश का सामॉ ,
किसी की बेबसी का है,
‘असर’ जो पास है तेरे,
दिया सब कुछ उसी का है,
— अरविन्द असर
D-2/15, रेडियो कालोनी,
किंग्स्वेकैम्प, दिल्ली-110009