नोटबंदी पर सहयोग, समर्थन और विपक्ष की राजनीति
देश में बड़े नोटों की बंदी की योजना के पन्द्रह दिन बीत चुके हैं। पीएम मोदी की जनसहयोग अपील का असर अब दिखलायी पड़ रहा है। पूरे देश की जनता लाख समस्याओं के बाद भी कतारों में खड़ी होकर अपने नोट बदलवाने व जमा करवाने का काम कर रही है। इतने विशाल देश में जब कोई बड़ा काम होता है तो उसमें कुछ न कुछ समस्या तो आती ही है। यह नोटबंदी तो कालेधन ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक महाअभियान है। पीएम मोदी के अभियान को जिस प्रकार से शांतिपूर्वक जनसमर्थन मिल रहा है उससे अराजक विपक्ष भौंचक्का रह गया है। जिन राजनैतिक दलों व लोगों की दुकानें कालेधन व नंबर दो के धंधों के सहारे चल रही थीं उन्हें अब बहुत बड़ा खतरा नजर आने लगा है। सरकार की योजना का विरोध करने वाले दल पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं।
इस योजना का विरोध अधिकांश क्षेत्रीय दल व कांग्रेस कर रहे हैं। इन सभी दलों की राजनीति दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक वाद की राजनीति के साथ ही साथ कालेधन पर आधारित रही है। भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद की राजनीति करती है जिसका सारा वजूद कालेधन व नंबर दो पर टिका है। यही हाल उप्र में सपा व बसपा का है। सपा और बसपा उप्र में अल्पसंख्यकवाद की भी राजनीति करती हैं। विगत चुनावों में बसपा ने पैसा पानी की तरह बहाया था। बसपानेत्री मायावती को धन की बेटी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि बसपा नेत्री मायावती टिकट के बदले काफी धन उगाही का खेल भी खेलती हैं। धन उगाही के खेल में सपा भी पीछे नहीं हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी का भी यही हाल है। आज ये सभी दल जिस प्रकार से हाथ धोकर सरकार की योजना के पीछे पड़ गये हैं उसका असली कारण यह है कि इन दलों की सारी कमाई एक ही झटके में कूड़े के ढेर में परिवर्तित हो गयी है। ये सभी दल अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि के चलते भी विरोध कर रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक विचलित दिल्ली के मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल हो रहे हैं। वह जनता के बीच पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं। यह वही केजरीवाल हैं जो कभी बड़े नोटों की बंदी का समर्थन कर चुके थे। जब समाजसेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल के मुददे पर जनआंदोलन प्रारम्भ किया था तब इन्हीं केजरीवाल ने बड़े नोटो को बंद करने की मांग करने वाले बाबा रामदेव के साथ मंच साझा किया था। लेकिन आज उनका दोहरा चरित्र पूरे देश ने देख लिया है। दिल्ली की विधानसभा आज दिल्ली की जनता की एक बड़ी भारी गलती के कारण अराजक तत्वों के हाथों में चली गयी है। केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा का सदुपयोग करने की बजाय उसको केवल पीएम मोदी का विरोध करने का मंत्र बना लिया है, जिसमें सभी संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करके तर्कहीन तरीके से मोदी विरोध किया जाता है तथा उनको जी भरकर गालियां दी जाती हैं।
आज केजरीवाल व उनके साथ खड़े हाने वाले सभी नेता जनता की निगाहों में गिर रहे है। अभी तक ममता बनर्जी के गृहराज्य बंगाल से भी किसी बड़ी अराजकता का समाचार नहीं प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि वह बौखला गयी हैं। बंगाल में बांग्लादेशी व पाकिस्तानी भारी संख्या में हर प्रकार की तस्करी का धंधा करते है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारोबार को तृणमूल कांग्रेस व वामपंथियों सहित कांग्रेस आदि का भी समर्थन प्राप्त हैे। बंगाल में कालेधन व नकली नोटों की बम्पर भरमार थी। नशीेले पदार्थों की तस्करी का सबसे बड़ा गढ़ बंगाल माना गया है। उससे होने वाली कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन सभी दलों को जाता रहा है। शारदा चिटफंड घोटाले में ममता बनर्जी पर भी संदेह की सुई लगातार लटकी हुई है। इन सभी दलो को लग रहा है कि यदि मोदी जी अपनी योजनाओं को सही अंजाम तक ले जाने में सफल हो गये तो उनकी राजनीति को ऐसे ही ब्रेक लग जायेगा।
दूसरी तरफ अभी संसद में नोटबंदी पर बहस शुरू भी नहीं हुयी कि अल्पसंख्यकवाद की पैरोकारी करने वाले कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद ने नोटबंदी की तुलना उरी हमले से करके अपनी असलियत खोलकर भाजपा सांसदों को रक्षात्मक होने की बजाय आक्रामक होने का आसान रास्ता दे दिया। अब आज कांग्रेस एक बार फिर कठघरे में खड़ी हो गयी है। पीएम मोदी के साथ आज पूरा देश पूरा सहयोग पूरी शांति के साथ कर रहा है लेकिन इसमें इन दलों को अराजकता दिखलायी पड़ रही है। यह भी कहा जा सकता है कि इन दलों को अपनी राजनैतिक जमीन खिसकने का भय सता रहा है। नोटबंदी पर केजरीवाल व ममता की धमकियों का सरकार व जनमानस की सेहत पर फिलहाल कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है। आज पीएम मोदी के साथ पूरा देश ही नहीं खड़ा है, अपितु पूरे विश्व का मीडिया जगत पीएम मोदी की नीतियों का गुणगान कर रहा हैं। वैश्विक मीडिया में नोटबंदी पर संपादकीय लिखे गये हैं, जिनमें पीएम मोदी को आधुनिक भारत का जनक तक माना जा रहा है।
भारत में पीएम मोदी की नोटबंदी के फैसले पर जहां जमकर सियासत हो रही हैं वहीं दूसरी ओर दुनियाभर के नेता व मीडिया जगत उनकी सराहना कर रहा है। ब्रिटिश अखबार द इंडीपेंडेंट ने नरेंद्र मोदी की तुलना सिंगापुर के पूर्व प्रधाानमंत्री ली कुआन यू से की है। आधंनिक सिंगापुर के जन्मदाता ली कुआन ने आर्थिक सुधारों की गंगा बहा दी थी जिसके बल पर उन्होनें वहां पर 1959 से 1990 तक पद संभाला था। अखबार का मानना है कि मोदी की नीतियां भी उन्हीं के समकक्ष चल रही हैं। चाहे वह एफडीआई का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ अहम लड़ाई। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी वह स्वयं प्रयासरत हैं।
इसी प्रकार अमेरिका, आस्ट्रेलिया, चीन, जापान सहित धुर विरोधी पाकिस्तानी मीडिया भी उनकी प्रशंसा के गुुण गा रहा है। अमेरिका के द वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूर्याक टाइम्स, वाल स्ट्रीट जनरल, आस्ट्रेलिया के द सिडनी हेराल्ड ने भी नोटबंदी पर लेख व संपादकीय प्रकाशित किये हैं। चीन का ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि पीएम मोदी का प्रयास सराहनीय है। वास्तव में अपने कार्यकाल का आधा सफर तय कर चुके पीएम मोदी का यह कदम बेहद सराहनीय है जिसका सभी दलों को देशहित में बेेहिचक समर्थन करना चाहिये था लेकिन आज यह नोटबंदी लग रहा है कि कहीं स्वार्थ वाली राजनीति का कहीं शिकार न हो जाये। लेकिन पीएम मोदी व सरकार के रूख से तो यही संकेत जा रहा है कि अब कालेधन व भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जंग शुरू हो गयी है वह फिलहाल वापस नहीं होने वाली।
कालेधन के खिलाफ निर्णायक जंग के चलते कई क्षेत्रों में जबर्दस्त उठापटक का दौर भी चल रहा है। कालेधन से प्रेम करने वाले लोगों ने अपने धन को खपाना शुरू कर दिया है। कोई नोटों को जला रहा है, कोई नदी में फेंक रहा है, कोई कूढ़े के ढेर में डाल रहा है। इन नोटों के बल पर मंदिरों सहित कई धार्मिक स्थलों का धन एकाएक बहुत अधिक मात्रा में बढ़ गया है। आज कालाधन रखने वालों में बौखलाहट का आलम है। यही कारण है कि आज कालेधन को सहेज कर रखने वाले लोगों का साथ देने के लिए कुछ दल आगे आ गये हैं तथा वे अपना संयम खो रहे हैं। लेकिन जनमानस का संयम बना हुआ है। यह एक बड़ा बदलाव है।
— मृत्युंजय दीक्षित