कविता

जलता कश्मीर

क्यारियाँ केसर की रक्तिम हो गयी
संवेदनायें मानव हृदय की सो गयी
थी घाटी जो कभी जन्नत सी सुन्दर
आतंक के कारण जहां से खो गयी

धरा लाल चौक की खून से सनी है
सरकार फिर भी मूकदर्शक बनी है
आम-जन के बारे में सोचें भी कैसे
दरबारों की अभी आपस में ठनी है

उन्हें हमारी पैलेट गन से एतराज है
तभी हरेक बच्चा वहाँ पत्थरबाज है
है सैनिकों की जान की चिन्ता किसे
मूर्ख बना जनता को बचाना ताज है

जो हर समय दुश्मन के गुण गाते हैं
पाक आतंकियों में आस्था जताते हैं
उठा फैंकते क्यों नहीं भारत से बाहर
भौंकते देश पर जो तिरंगा जलाते हैं

कार्यवाही को इतना क्यों टालते हो
गद्दारों को मार क्यों नहीं डालते हो
कर दो सिर को धड़ से जुदा उनकी
कुत्तों को बिरयानी खिला पालते हो

लेना होगा बदला सैन्य कुर्बानी का
देश पर फ़ना हुई हरेक जवानी का
काट शीश ले जाते वे कैसे हर बार
रूप लिया है क्या खून ने पानी का

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...