गीत/नवगीत

जीने दो

भारत की आर्थिक आजादी का
प्रतिक है गुलाबी नोट
काला बाजारियों भ्रष्टाचारियों पर
हुयी है गहरी चोट

किसी को लगती है ‘ नियत में खोट
कहीं दिख रहे हैं ‘ बस वोट ही वोट

जनता का दुखड़ा ‘ किसीको ना दिखता
कतारों में रहने को ‘ इन्सां है बिकता

मासुम भूखे ‘ बिलखते घरों में
ममता दुहाई ‘ दिए जा रही है
नहीं थम रही आह ‘ देखो किसीकी
जनता तो बस ‘ जिए जा रही है

साँसें किसीकी छूटें , छूटने दो
सपने किसी के टूटें , टूटने दो
कुरबानियां इनकी तब ही सही हैं
जब किसी चोर को ना कभी छूटने दो

चोरों को गर तुम पकड़ भी ना पाते
गरीबो को फिर क्यूँ बहुत हो सताते

नाकामियों के इन कड़वे घूंटो को
ना तुम पीयो ना हमें ही पीने दो
भारत को भारत ही रहने दो प्यारे
मस्ती से जियो हमें भी जीने दो

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।