बैंक के अविश्वास में
आज भी
कतार में
नगद के इन्तजार में
खड़ा हूँ बीच बाजार में
बैंक के अविश्वास में ।
नीलाम हो रहा हूँ
तुम्हें
क्या फर्क पड़ता है
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है
न आगे है न पीछे है ।
आज भी
कतार में
नगद के इन्तजार में
खड़ा हूँ बीच बाजार में
बैंक के अविश्वास में ।
नीलाम हो रहा हूँ
तुम्हें
क्या फर्क पड़ता है
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है
न आगे है न पीछे है ।