नोटबंदी को जनता का समर्थन
8 नवंबर की रात ठीक 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नाम अपने सम्बोधन में देश में प्रचलित सभी 500 व1000 रूपये के नोटों के प्रचलन पे उसी रात 12.00 बजे से प्रतिबंद लगाने की औचक घोषणा कर दी ।
अचानक से हुए इस घोषणा ने कुछ समय के लिए लोगों को सकते में डाल दिया । और लोग परेशान हो उठे । पर धीरे-धीरे लोगों को सारा खेल, सारा माजरा समझ में आने लगा । और फिर गरीब लोग जिनके पास बस गिने-चुने ही 500 व 1000 के नोट थे वे बैंक जाकर अपना नोट बदलवा लाये । उसी प्रकार मध्यमवर्गीय परिवारों ने भी बैंकों के जरिये अपने पास रखे 500 व 1000 के नोटों को या तो नये नोटों से बदलवा लिया या फिर अपने खाते में जमा करा लिया । इस तरह से थोड़ी मुश्किलों का सामना कर देश के आम जन ने पैसों से जुड़ी परेशानी को दूर कर लिया । कुछेक भले ही अब भी लाइनों में खड़े हैं । पर देश के आम आदमी कहे जाने वाले गरीब व मध्यमवर्ग ने लाख परेशानीयों के बाद भी नोटबंदी के प्रति अपना खुला समर्थन जाहिर किया । हर सर्वे, हर साक्षातकार में लोगों ने प्रधानमंत्री के प्रति अपनी आस्था जताते हुए पूर्ण समर्थन देने की बात कही है । लोग खुलकर कह रहे हैं कि वे मोदी को 50 दिन के वजाय 100 दिन भी देने को तैयार हैं ।
प्रधानमंत्री तथा नोटबंदी के समर्थन की बात को लोगों ने नरेन्द्र मोदी एप पर अपना मत देकर पहले ही जाहिर कर दिया । पर कालेधन की फसल काटने वाले कुछ नेताओं ने इस सर्वे को झूठला दिया । पर जनता भी इसबार कहां मानने वाली थी । वह चुपचाप सब देख-सुन रही थी ।
और आम जनता हर सम्भव अपना मत नेताओं को बताने में जुटी हुई थी । पर कालेधन की आंच में तपनेवाले नेताओं ने जनता के मत को दरकिनार कर संसद में हंगामा करना आरंभ कर दिया । और इस हंगामें के कारण लगातार संसद का शीतकालीन सत्र बर्बादी की भेंट चढ़ता रहा । जिसके फलस्वरूप जनता के खुन-पसीने की गाढ़ी कमाई का करोड़ो रूपया रोज बर्बाद हो रहा है । साथ ही सभी जरूरी व जनकल्याणकारी कामकाज ठप पड़े हैं सो अलग ।
इस तरह अपने स्वर्थ की खातिर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे नेताओं को जनता ने 28 नवंबर सोमवार को विपक्षद्वारा बुलाये गये भारतबंद को असफल बनाकर अपना जवाब दे दिया । इतना ही नहीं बल्कि नोटबंदी के फैसले के बाद देश में हुए उपचुनावों और निकाय चुनावों में भी जनता ने विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब दिया है ।
हाल ही में हुए चुनाव नतीजों पे अगर जरा सा गौर करें तो पता चलता है कि नोटबंदी के फैसले के बाद देश में जहां-जहां चुनाव हुए हैं वहां बीजेपी का प्रदर्शन पहले की तुलना में अधिक सशक्त हुआ है। हालांकि यह चुनाव बहुत ही स्थानीय स्तर के थे लेकिन फिर भी इन चुनावों में बीजेपी की जीत ने यह संकेत दे दिया है कि नोटबंदी का फैसला बीजेपी के खिलाफ ना होकर उसके हक में है। और नोटबंदी को जनता का समर्थन हासिल है।
सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले के बाद देश के कई राज्यों में उपचुनाव के साथ ही महाराष्ट्र और गुजरात में निकाय चुनाव हुए हैं और इन सभी चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन फहले से अधिक शानदार रहा है। नोटबंदी के ऐलान के बाद विपक्षद्वारा किये शोरगुल के बीच महाराष्ट्र में हुए निकाय चुनाव में भाजपा ने जबर्दस्त सफलता हासिल की है। महाराष्ट्र निकाय चुनावों में भाजपा ने 610 सीटें जीती हैं। वहीं सर्वाधिक 52 नगर पंचायत अध्यक्ष भी बीजेपी के चुने गए। इस चुनाव को नोटबंदी के पक्ष में जनता के जनादेश के रूप में देखा जा सकता है। जो इस बात का प्रमाण है कि नोटबंदी को जनता ने अपना समर्थन दे दिया है ।
वहीं महाराष्ट्र के बाद गुजरात में हुए निकाय चुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन सराहनीय रहा। यहां भी नोटबंदी के फैसले के बाद हुए चुनाव में भाजपा ने 32 जिला पंचायत, तालुका पंचायत और नगर पालिका परिषद के लिए हुए उप चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए 23 सीट जीत ली हैं। और वहीं कांग्रेस को मात्र 8 सीट ही मिले हैं ।
इन दो निकाय चुनावों से पहले कई राज्यों में हुए उपचुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। ये सभी चुनाव नोट बंदी के फैसले के बाद ही हुए थे। मध्य प्रदेश एक लोकसभा और एक विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में दोनों ही सीटें भाजपा के खाते में गईं। मप्र की नेपानगर विधानसभा में भाजपा की जीत का अंतर इस बार बढ़ भी गया। 2013 का विधानसभा चुनाव बीजेपी 22,000 वोट से जीती थी। जबकि इस बार 40,000 वोटों से जीती है यानि जीत के अंतर में 18,000 वोट का इजाफा हुआ। असम की लखीमपुर की सीट भी भाजपा के खाते में आई। अरुणाचल प्रदेश में भी भाजपा को जीत मिली।
विपक्षद्वारा नोटबंदी को मुद्दा बनाये जाने के बाद भाजपा को इन चुनावो में मिली जीत ने मोदी व भाजपा के प्रति जनता के खुले समर्थन का ऐलान कर दिया है । जो विपक्षीयों के लिए एक गहन चिंता विषय है । और अब इन चुनावी नतीजों को देखते हुए विपक्षी दलों को अधिक धैर्य और संवेदनशीलता से जनता के मनोभाव को समझना चाहिए और अपने हठयोग का त्याग कर संसद चलने में पूर्ण सहयोग देना चाहिए । विपक्ष को शीघ्र-अतिशीघ्र जनकल्याणकारी योजनाओं को कार्यकरी रूप प्रदान करने में भी अपनी भूमिका तय करनी चाहिये । जिससे जनता में उनकी अच्छी पैठ बन सके । और नतीजे उनके हक में हो ।
— मुकेश सिंह
सिलापथार, असम