नोटबंदी को मुद्दा न बनने दें
जब से देश में नोटबंदी आरंभ हुई है देश के सभी खबरीया टि.वी. चैनलों और के छोटे-बड़े अखबारों में बस इसीकी चर्चा हो रही है । हिन्दी के सभी राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक अखबारों के संपादकीय पृष्ठों को खोलते ही बस नोटबंदी को लेकर लिखे बड़े-बड़े लेख देखने को मिल रहे हैं । चारों ओर बस एक नोटबंदी की ही चर्चा है । पर हमारे देश के काबिल बुद्धिजीवी नोटबंदी को लेकर इन नकारत्मक लेखों को लिखते वक्त और हमारे पत्रकार भाई नोटबंदी से जुड़े सभी नकारत्मक खबरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करते समय यह भूल रहें हैं कि उनके कलम से निकलते ये शब्द भंडार जाने-अंजाने में देश के दुश्मनों की मदत कर रहें हैं । हर समय टी.वी. पे आते खबरों के साथ ही अखबारों में छपते समाचार आम लोगों के मन में नोटबंदी को लेकर एक अंजाने खौफ को पैदा कर रहें हैं । देशहित में लिए गए एक फैसले को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा रहा है । और इससे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे कालेधन के स्वामीयों को ही फायदा पहुचेगा । राजनीति में ऐसे भ्रष्टाचारी व देशविरोधी राजनीतिज्ञों की धाक और बढ़ेगी,जिसका खामियाजा हम सबको भुगतना होगा । हम सब से मेरा तात्पर्य उन लोगों से भी है जो जाने-अंजाने में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले राजनीतिज्ञों को सशक्त करने में जुटे हुए हैं ।
नोटबंदी के विरोध में कोई भी लेख या खबर लिखते वक्त कलम के सिपाहीयों को जरा सजग होने की जरूरत है। कुछ भी लिखने अथवा बोलने से पहले हमें यह बात याद रखनी होगी कि किसी भी देशहित के फैसले का विरोध व देशविरोधी विचारधारा का समर्थन समाज में बैठे आपराधिक मानसिकता वाले लोगों को देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है । और आए दिन अखबारों में विरोधीयों को लेकर छपती लिखावटों ने सायद ऐसा करना आरंभ कर भी दिया हो । और उदाहरण के तौर पर हम याद कर सकते हैं कि किस तरह पिछले कुछ वर्षो में कई बार विश्व के विभिन्न स्थानों पे सुरक्षा एजेंसियों के हाथों पकड़े गए विभिन्न इस्लामिक आतंकवादीयों ने खुद को ओसामा-बिन-लादेन द्वारा प्रेरित बताया था । जबकि वे ओसामा से कभी मिले नहीं थे पर अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं में ही उसके कारनामों को पढ़कर उससे प्रभावित हुए थे । उसे अपना आदर्श मानने लगे थे । और यह घटनाएं किसी भी समाजिक सरोकार वाले विषय पर लिखने से पहले हमें जागरूक करने के लिए काफी होनी चाहिए । अतः एक लेखक के तौर पे कुछ भी लिखने से पहले हमें सजग होनी की आवश्यकता है ताकि देश में कहीं भी किसी प्रकार के अपराध की जड़ें न जम पायें ।
वैसे कलम के एक सिपाही के रूप में हमें करने को बहुत कुछ है । एक लेखक के तौर पे समाज की सारी बुराइयों को उजागर करना हमारा कर्तव्य है । पर इस कर्तव्य को पूरा करते वक्त हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारे लेखों से समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आए । जिसका सीधा लाभ देश की जनता को हो ।
आज देश में नोटबंदी से भी बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं । नोटबंदी से भी बड़े मुद्दे हैं । और उनका शीघ्र समाधान भी देशहित में जरूरी है । नोटबंदी का क्या है? ये तो एक अल्पकालिक समस्या है जो सीघ्र ही समाप्त हो जाएगी और आनेवाले समय में लोगों के जीवन में एक नया सवेरा लेकर आएगी।
आखिर हम भारतवासी सदैव ही अपने देश को एक महाशक्ति के रुप में देखना चाहते हैं । और अगर सत्य में हमें अपने देश को एक महाशक्ति बनाना है तो इसके लिए हमें समाज के हर क्षेत्र के विकाश के लिए जागरूकता लाना होगा । हमें कई मानों में खुद को बदलना होगा और फिर देश में बदलाव की एक अलख जगानी होगी । हमें समझना होगा कि अन्ना आंदोलन का विफल होना व स्वच्छ भारत अभियान की असफलता अन्ना हजारे व नरेन्द्र मोदी की नहीं बल्कि हमारी पराजय है । क्योंकि अन्ना व मोदी सिर्फ अपने नीजी स्वर्थ के लिए नहीं भाग रहें हैं बल्कि आपके और हमारे भविष्य के लिए, देशहित के लिए लड़ रहे हैं । उनका संघर्ष किसी पार्टी विशेष या सरकार से नहीं है, बल्कि उनका संघर्ष तो भ्रष्टाचार से है, अस्वच्छता से है । उसी भ्रष्टाचार से जो देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है । सबसे बड़ा मुद्दा है । और नोटबंदी भ्रष्टाचार पे एक तीव्र आघात है । क्योंकि अगर देश व समाज से भ्रष्टाचार मिट जाये तो हमारी कई छोटी-बड़ी परेशानीयां अपने आप ही दम तोड़ देंगी । भ्रष्टाचार के खात्मे के साथ ही देश में बढ़ते अन्य अपराधिक घटनाओं में भी कमी आएगी ।
भ्रष्टाचार इस देश की सच्चाई है । इस देश में चाहे आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, पेंसन लेना हो या आपको राज्य सरकारों के अधीन आनेवाले किसी सरकारी दफ्तर में नौकरी चाहिए अथवा आपको सरकारी बैंकों से लोन लेना है, यकीन मानिए कि बिना पैसों के लेन-देन के आपका काम बन ही नहीं सकता । अगर सरकारी दफ्तरों में चढ़ावा चढ़ाने हेतु आपके पास पैसे नहीं हैं तो समझ लिजीए कि वह सरकारी सुविधा आपके लिए उपलब्ध नहीं है । अब तो आलम ये हो चला है कि आम लोगों की बातचीत में अक्सर कहते सुना जाता है कि भारत में बिना रिश्वत के सरकारी दफ्तरों में फाइलें हिलना ही नहीं जानती । उसे एक टेबल से दूसरे टेबल तक जाने के लिए रूपये के पंख लगाने पड़ते हैं । और अगर यह हमारे देश की सच्चाई है तो याद रखिये इसके लिए जिम्मेदार भी हम ही हैं । और ऐसे में अब हमें भ्रष्टाचार के दीमकों से लड़ने की खातीर नोठबंदी का समर्थन करने की जरूरत है । ताकी रिश्वत लेकर बनाये गए पैसे आफसरों की अलमारी से बाहर निकले और उनकी करतुत सबके सामने आये या फिर वे पैसे अलमारी में ही रद्दी बन जाये और बिन बात के पैसे खोने का दुख एकबार ही सही पर वे भी अनुभव करें ।
जानकारों के मुताबिक भ्रष्टाचार नामक इस विषैले नाग को कुचलने का यही सबसे उचित समय है । अब हमें शीघ्र ही अन्ना जैसे एक बलिष्ठ मार्गदर्शक व निस्वार्थ नेता के पीछे चलते हुए भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक सशक्त क्रांति को जन्म देने की जरुरत है । और इसबार हमें सिर्फ लोकपाल की मांग नहीं करनी चाहिए बल्कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनजागृति पैदाकर भ्रष्टाचारीयों के अन्तर्मन में जनता के विरोध का खौफ जगाना होगा और इसके लिए हमें अपने इतिहास के पन्नों को पलटकर उनसे सीख लेनी होगी । क्योंकि इस देश को अगर कोई सही मायनों में बदल सकता है तो वे हैं इस देश के युवा । देश के छात्र । क्योंकि अगर अतीत में झांककर देखा जाये तो हम देखेंगे कि अंगरेजों से भारत को आजादी दिलाने में देश के युवा छात्रों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था । पूरे प्रशासन को उन्होने हिलाकर रख दिया था ।और उनकी उसी मेहनत व निष्ठा का नतीजा है कि आज हम गुलामी की बेड़ीयों से आजाद हैं ।
अपने उन्ही वीर पूर्वजों के महान कर्मों व योगदानों को याद करते हुये आज के युवा छात्रों को भी आजके गांधी कहे जाने वाले अन्ना हजारे के साथ आकर एक निर्णायक जंग लड़ना होगा । देश को अपराधमुक्त, शिक्षित व विकशित देश के रुप में गढ़ने के लिए सभी को हाथ से हाथ मिलाकर आगे बढ़ना होगा । समाज से छुआछूत,लिंगभेद,भ्रष्टाचार, बेइमानी,जमाखोरी,अंधविश्वास,गरीबी,निरक्षरता,बेरोजगारी जैसे समस्यायों को मुद्दा बनाकर इनका त्वरित समाधान ढूंढना होगा । और इसके लिए देश के बुद्धिजीवीयों को सबसे पहले अपनी कमर कसनी होगी । क्योंकि संसार का कोई भी विप्लव बिन जागरूकता के सम्भव नहीं है । और देश को जागरूक बनाने का काम देश के बुद्धिजीवीयों का है । और इसका प्रमाण भी हमें इतिहास के पन्नों में ही मिलता है । अब अगर हम देश की इतिहास की मानें तो पता चलता है कि अंगरेजों से आजादी दिलानेवाले स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य नायक जनजागृती लानेवाले हमारे तबके बुद्धिजीवी ही थें । जिन्होंने अपने कलम के धार से देश में जागृती पैदा की थी और उन्ही कलम के सिपाहीयों के सुलगाये हुए चिंगारी से पैदा हुए शोलों ने हमें आजादी दिला दी । कहतें हैं इतिहास अपने को दोहराता है । और अब समय की मांग है कि एक नये क्रांती का जन्म हो । छुआछूत,लिंगभेद,भ्रष्टाचार,बेइमानी,जमाखोरी,अंधविश्वास,गरीबी,निरकक्षरता,बेरोजगारी जैसे समस्याओं को मुद्दा बनाकर उनका त्वरित समाधान ढूंढने के लिए समाज में क्रांती की अलख जगाने की जरूरत है । जिसका नेतृत्व देश के बुद्धिजीवीओं को करना है ।
यह समय की मांग है कि भ्रष्टाचारीयों के कर्मों का बखान बंद कर हम एक जनजागृती की चिंगारी को सुलगायें । और हमारी पूरी कोशिश यही होनी चाहिए कि इसबार सामाजिक बदलाव की कोई क्रांती अपने मंजील तक पहुंचने से पहले ना दम तोड़ दे । अब कोई अन्ना किसी राजनैतिक महत्वाकांक्षावाले व्यक्ति के हाथों ना छला जाये । झूठे विरोध के चलते देशहित में लिया गया कोई फैसला अपनी मंजील तक पहुंचने से पहले ना दम तोड़ दे । अपने आपको,देश की जनता को इंसाफ दिलाने के लिए हमें फिर से 19 वीं शताब्दी को दोहराना होगा । और देशहित व समाज के हित में अपने कलम को धार देनी होगी तथा स्वार्थ से थोड़ा उपर जाकर सोचना होगा । और इसकी शुरूआत हमें नोटबंदी को अपना समर्थन देकर करनी चाहिये । ना की मुद्दा बनाकर ।
— मुकेश सिंह
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