अंत हो
भ्रष्टता के आचरण का अंत हो.
अभ्युदय की वांछना, अत्यंत हो.
सत्यमेव जयते, जय जयकार हो,
अतिथि देवोभव प्रथा विजयंत हो.
धर्म की भी हो अब, पुनर्स्था पना,
न्याय सर्वोपरि मरण पर्यन्त हो.
आज पीढ़ी हो रही है, मार्ग-च्युत
सन्मति हवन करें पीढ़ी पंत हो
ले अब इस धरा पर, जनम युगंधर,
‘आकुल’ अब सदैव यहाँ बसंत हो.
— डॉ गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’