गजल
हम अपने गाँव का बचपन सुहाना, भूल न पाये ।
लंगोटिया यार वो अन्नू दिवाना ,भूल न पाये ।
वो पूरब खेत की पहचान कुबड़ी नीम की छाया,
वो पश्चिम बाग का बरगद पुराना ,भूल न पाये ।
वो फागुन की रात चौपाल मे धमहर गूँजती थी,
और बारिश मे वो आल्हा सुनाना ,भूल न पाये ।
जिन्दगी मे कामचोरी सरीखी चोरियाँ भी की,
मगर चोरी से गन्ना तोड़ लाना ,भूल न पाये ।
शहर की गोद में आकर भले सब कुछ भुला दें ,हम
गाँव को छोड़कर के शहर आना भूल न पाये।
— दिवाकर दत्त त्रिपाठी