“दोहा मुक्तक”
शीर्षक — खुशहाल ,सम्पन्न, समृध्द
समृद्धि तुझको कब कहें, रहती तूँ खुशहाल
संपन्नता नजीर है, क्यों रहती पैमाल
सुख समीप की चाहना, लालच तेरे धाम
मन का चैन चुरा लिया, करके मालामाल॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
समृद्धि तुझको कब कहें, रहती तूँ खुशहाल
संपन्नता नजीर है, क्यों रहती पैमाल
सुख समीप की चाहना, लालच तेरे धाम
मन का चैन चुरा लिया, करके मालामाल॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी