कविता
बहुत मोहतबर और
सूझवानों की
महफिल से आई थी
बहुत कुछ सुना
विचारशील
तर्कशील
तर्कयोग्य
मेरे तर्को को
भी तो
सराहा गया
खुश थी
सुधिजनों की संगत कर
परन्तु रात मुझे
यह स्वप्न क्यों कर आया
कि मै
एक सरोवर मे से
नहा कर निकली हूँ
और मेरे तन से
चिपकी हैं कई
जोंक
मुझे लिजलिजा सा लग रहा है
मुझे डर लग रहा है…
— रितु शर्मा