ऋषि-भक्त वेद विदुषी आचार्या सूर्यादेवी से अजमेर में भेंट एवं वार्तालाप
ओ३म्
आर्य समाज के सभी विद्वान एवं विदुषी बहिनें आचार्या सूर्यादेवी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित हैं। आपकी शिक्षा दीक्षा आचार्या प्रज्ञादेवी जी के वाराणसी स्थित जिज्ञासु स्मारक पाणिनी कन्या गुरुकुल में सम्पन्न हुई है। हमें 6-8 दिसम्बर, वर्ष 1996 में आयोजत इस गुरुकुल के रजत जयन्ती समारोह में जाने का अवसर मिला था। वहां पहली बार वेद विदुषी आदरणीय बहिन सूर्यादेवी जी के हमने दर्शन किये थे। उनसे वार्तालाप भी किया था और उस जानकारी के आधार पर एक संक्षिप्त लेख लिखा था जो जालन्धर से प्रकाशित आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के साप्ताहिक मुख पत्र में प्रकाशित हुआ था। बहिन जी आर्यजगत् की वेदों की उच्च कोटि की विदुषी देवी हैं। आपने वेदों से संबंधित कुछ विद्वानों की शंकाओं के समाधान में भी पुस्तकों की रचना की है। आपकी कुछ पुस्तकें भी हमारे पास हैं जिनमें से एक है ‘त्रिपदी गौ’। विगत लम्बे समय से हम आपके वैदुष्य से पूर्ण लेखों को आर्य जगत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते आ रहे हैं। एक बार ऋषि जन्मभूमि टंकारा में भी हमनें बहिन मेधा देवी जी एवं गुरुकुल की कुछ ब्रह्मचारियों के साथ आपके दर्शन किये थे। देहरादून के मानव कल्याण केन्द्र वा द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल एवं श्री मद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा, देहरादून में भी आपके दर्शन करने व प्रवचन सुनने का सौभाग्य हमें अनेक बार मिला है। विगत दिनों हमें पता चला था कि आप परोपकारिणी सभा, अजमेर के निवेदन पर ऋषि दयानन्द के यजुर्वेद भाष्य के सम्पादन आदि विषयक कुछ वृहत कार्य कर रही हैं। आपकी अनुजा बहिन धारणा जी शिवगंज राजस्थान में कन्याओं का एक गुरुकुल चलाती हैं। आप भी वाराणसी स्थित डा. प्रज्ञादेवी जी के गुरुकुल से स्नातिका हैं। धारणा बहिन जी को इस वर्ष परोपकारिणी सभा द्वारा आयोजित ऋषि मेले के कार्यकम में सम्मानित भी किया गया है जिसमे हम भी सम्मिलित थे। बहिन धारणा जी को गुरुकुल के संचालन में आचार्या सूर्यादेवी जी का पूरा सहयोग मिलता है। बहिन सूर्यादेवी जी का अधिकांश समय गुरुकुल में अध्ययन वा अध्यापन में ही व्यतीत होता है। हम अपने ज्ञान व अनुमान के आधार पर मानते हैं कि आप वेदों व वैदिक साहित्य की अधिकारी विदुषी देवी हैं। हमारा यह भी मानना है कि आपका यह गुरुकुल देश के कुछ गिने चुने कन्या गुरुकुलों में अन्यतम है। आर्य बन्धुओं का कर्तव्य है कि बहिन सूर्यादेवी जी को सभी प्रकार के दायित्वों से मुक्त रखने के लिए उनकी गतिविधियों में अधिकाधिक सहयोग करें ओर उनसे उनकी योग्यता के अनुसार आर्यसमाज के वर्तमान व भविष्य की दृष्टि से उत्तम व महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करायें।
हमें लगता है कि बहिन सूर्यादेवी जी में वेदों का भाष्य करने की दक्षता है। ऋषि दयानन्द जी के बाद उनके अन्य अनुयायियों वा शिष्यों ने चारों वेद, किसी एक वेद व वेद के किसी भाग पर भाष्य व टीकायें आदि लिखी हैं। हमारे यह सभी विद्वान पुरुष वर्ग से ही हैं। ऋषि दयानन्द जी के बाद वेदभाष्य करने वालों में श्री हरिशरण सिद्धान्तालंकार, श्री जयदेव विद्यालंकार, पं. आर्यमुनि जी, स्वामी ब्रह्ममुनि जी, पं. शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ, पं. तुलसी राम स्वामी, पं. विश्वनाथ विद्यालंकार विद्यामार्तण्ड, डा. रामनाथ वेदालंकार विद्यामार्तण्ड, पं. क्षेमकरण दास त्रिवेदी, आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री, पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार आदि प्रमुख विद्वान हैं। स्वामी डा. सत्यप्रकाश सरस्वती एवं डा. सत्यकाम विद्यालंकार जी ने चारों वेदों का अंग्रेजी में अुनवाद किया है। स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी ने भी सामवेद पर भाष्य किया है। पं. विश्वनाथ विद्यालंकार, आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार, डा. सत्यप्रकाश जी तथा स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी का तो हमें सान्निध्य भी प्राप्त रहा है। यह सभी वेद भाष्यकार पुरुष ही हैं। मध्यकाल में हमारे आचार्यों ने अज्ञानता वा स्वार्थ के कारण समाज की सभी स्त्री व शूद्रों को वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित कर दिया था और उनके वेदाध्ययन करने पर अनेक अनुचित दण्डात्मक विधान किये थे जिनसे मुख्यतः नारी जाति में वेदों के अध्ययन व श्रवण की परम्परा पूर्णतयः बन्द हो गई थी। मध्यकाल व उससे पूर्व किसी वेदों की भाष्यकार विदुषी महिला का नाम इतिहास में पढ़ने को नहीं मिलता। कुछ वेद मन्त्रों के अर्थों की साक्षातकत्री अवश्य ही कुछ ऋषिकायें हैं परन्तु वेदों के भाष्यकारों में एक वा अधिक स्त्रियों के नाम भी अवश्य होने चाहियें, ऐसा हमें लगता था।
हमने अपने मित्रों व कुछ लेखों के माध्यम से बहिन सूर्यादेवी जी सहित किसी विदुषी बहिन द्वारा चार में से किसी एक व अधिक का भाष्य करने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी। बहिन सूर्यादेवी जी व्यस्त रहती हैं, अतः वह इस कार्य में प्रवृत्त नहीं हो सकी थीं। अजमेर में दिनांक 4 से 6 नवम्बर, 2016 के ऋषि मेले के दूसरे दिन हमें बहिन जी से संक्षेप में बातचीत करने का अवसर मिल ही गया तो अनेक बातों के साथ हमने उन्हें किसी एक वेद का भाष्य करने के कार्य को भी ध्यान में रखने का निवेदन किया। इस बार बहिन जी ने हमें इस विषय पर गौर करने वा ध्यान देने की बात कही है। हमें लगता है कि यह उनकी योग्यता का सबसे अधिक उपयोग हो सकता है और वह इसे अवश्य करेंगी। यदि बहिन जी इस कार्य में प्रवृत्त हो जाती हैं और ईश्वर की कृपा से यह कार्य पूरा हो जाता है तो हम पौराणिक जगत को यह सन्देश दे सकते हैं कि तुम्हारें आचार्यों ने जिस मातृशक्ति को वेदाध्ययन से वंचित कर दिया था, उसी वेदाध्ययन द्वारा ऋषि दयानन्द भक्त व उनकी अनुयायी एक स्त्री, बहिन व मातृशक्ति ने वेदों का भाष्य कर तुम्हारी उस मान्यता को धराशायी कर दिया है। इससे हमारे गुरुकुल की योग्य छा़त्राओं को भी भविष्य में वेद और वेद विषयक प्रमुख ग्रन्थों पर टीका आदि लिखने की प्रेरणा मिलेगी। महर्षि दयानन्द जी यही चाहते थे कि सभी मनुष्यों को वेदाध्ययन का अवसर मिले और वह अधिक से अधिक इस कार्य में प्रवृत्त होकर कुछ ऐसा कार्य करें जिससे वेदाज्ञा ‘‘कृण्वन्तों विश्वमार्यम्” के उद्देश्य में प्रगति होकर वह भविष्य में पूरा हो सके। यदि संसार से अविद्या का समूल उच्छेद करना है तो वेदाध्ययन को जन-जन में प्रवृत्त करना ही होगा। विज्ञान ने जिस प्रकार उन्नति करते हुए नाना प्रकार के कम्प्यूटर और विभिन्न सुविधाओं से सज्जित मोबाइल फोन आदि अनेकानेक सुविधाजनक यन्त्र वा वस्तुओं का निर्माण किया है, उसी प्रकार आर्यसमाज द्वारा प्रभावशाली रूप से जन-जन में वेद प्रचार करते रहने से वह समय अवश्य आ सकता है कि अब अविद्या अपनी समाप्ती पर आ जाये, अविद्याजन्य सभी मत-मतान्तर समाप्त हो जायें और लोग वैदिक मान्यताओं को जानकर इस विचारधारा को ही अपने जीवन का उद्देश्य व आचरण स्वीकार करें।
अजमेर में देहरादून से हमारे वरिष्ठ आदरणीय मित्र और वैदिक विद्वान श्री कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री भी साथ गये थे। हमने बहिन जी से वार्तालाप करने के साथ कुछ चित्र भी लिये। भविष्य में क्या होना है, हम नहीं जान सकते। महर्षि दयानन्द के सन् 1863 में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश के समय भी किसी ने यह अनुमान नहीं किया था कि कोई व्यक्ति आकर वेदों का उद्धार व जन-जन में वेदों का प्रचार करेगा। स्त्री व शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकार दिलायेगा। सामाजिक भेदभाव और जन्मना जाति व्यवस्था पर तीव्र प्रहार करने के साथ मूर्तिपजा, कब्रपूजा, व्यक्तिपूजा, अवतारवाद, फलित ज्योतिष, मृतक श्राद्ध, अनमेल व बेमेल विवाह का विरोध कर उन्हें ज्ञान व तर्क के आधार पर पराजित करेगा। मत-मतान्तरों की मिथ्या व असत्य मान्यताओं व सिद्धान्तों का खण्डन कर सत्य मान्यताओं व सिद्धान्तों से परिचित करायेगा। जैसे तब अनुमान नहीं था वैसे ही हम अब भी भविष्य का अनुमान नहीं लगा सकते। हमसे जो हो सकता है, उसे हम अधिक से अधिक व अच्छे से अच्छा करने का प्रयास करें और शेष के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। हमें लगता है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जायेगी। ईश्वर उसे अवश्य सुनेगा और यथा समय पूरी भी करेगा। इसी के साथ हम लेखनी को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य