दो मुक्तक
सजल नयन आज जलधार
उर प्रिय तुमको रहा पुकार
रात कांटों की सेज समान
खोजता तुमको मेरा प्यार
विरह की सुलग रही है दीप्ति
मिलें कभी मन अपना हो तृप्त
मिलन की चाह अभी तक शेष
तुम्हारे बिन जीवन मेरा रिक्त
©अरुण निषाद
सजल नयन आज जलधार
उर प्रिय तुमको रहा पुकार
रात कांटों की सेज समान
खोजता तुमको मेरा प्यार
विरह की सुलग रही है दीप्ति
मिलें कभी मन अपना हो तृप्त
मिलन की चाह अभी तक शेष
तुम्हारे बिन जीवन मेरा रिक्त
©अरुण निषाद