बे-वजह
बे-वजह यूँ जो हंस रहा है कोई
लगता खुद ही से है खफा कोई
आज दरिया पे फिर रवानी है
रेत पर नाम लिख रहा है कोई
ये जो ख्वाबों की ज़मी गीली है
आँख फिर नम कर रहा है कोई
आज मौसम धुआं धुआं सा है
कहीं अरमान जल रहा है कोई
ये जो माहौल में ख़ामोशी है
जिक्र मेरा ही कर रहा है कोई
शेर “राहत” पे लिख रहा है कोई
दरिया कूज़े में कर रहा है कोई