गीत/नवगीत

गीत : गजब किए सरकार

आपने बंद कर दिए नोट,
कहे, है काला धन पर चोट,
अचानक परमाणु विस्फोट,
भले ना हो मन में कोई खोट,
मगर मंद मंगरू का कारोबार।
आप तो गजब किए सरकार।।
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सबने मानी आपकी बात,
लगे है लाइन में सब साथ,
अब तो बिगड़ रहे हालात,
कैश ले गए वो लगा के घात,
करो कुछ उनका भी उपचार।
आप तो गजब किए सरकार।।
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नेता-मंत्री लगे प्रचार में,
अंबानी-अडानी व्यापार में,
काम छोड हम लगे कतार में,
कब तक काम चले उधार में,
कुछ जनता का भी करो विचार।
आप तो गजब किए सरकार।।
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जैसे-तैसे कर दो हजार आया,
मंगरू तो फिर फूले नही समाया,
जब सब्जी खातिर छुट्टे ना पाया,
तब उसका सिर चक्कर खाया,
तो बोलो अब कैसे करे बाजार।
आप तो गजब किए सरकार।।
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सत्तर फिसदी साक्षर देश में,
आपको क्या लगता आदेश में,
आप लगे हुए हो कैशलेस में,
सब कालाधन है पड़ा विदेश में,
अब होगी डकैती बिना हथियार।
आप तो गजब किए सरकार।।
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मजदूरी में चेक न लगता,
महंगाई पर ब्रेक न लगता,
लेन-देन पर टेक न लगता,
मंसूबा कुछ नेक न लगता,
खटमल खातिर खाट जलाया यार,
आप तो गजब किए सरकार।।
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©सौरभ सतर्ष
इलाहाबाद

सौरभ सतर्ष

जन्म तिथि- 18-07-1989 जन्म स्थान- बगहा, बिहार शिक्षा- बी• टेक•(मेकेनिकल) रूचियाँ- अध्ययन, अध्यापन, लेखन, फिल्में देखना। मो• नं•-09415480072 ई-मेल- [email protected] फेसबुक- https://www.facebook.com/saurabh.satarsh आपने स्नातक के बाद शौक को तरजीह दी और मन में उठने वाले तरंगों को शब्द देकर कागज पर उकेरने लगे। सबकुछ जानने की लालसा, बाबा पं• लालजी मिश्र से प्राप्त सरल, स्पष्ट, सहज जीवन जीने का मंत्र, व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण और सूक्ष्मावलोकन की प्रवृति दिनानुदिन प्रबल होती गई जो रचना में स्पष्ट दिखती है। आपकी रचना प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं (आखर, लोकचिंतन, अनुभव, वर्तमान अंकुर, किसलय आदि) में हिंदी के साथ साथ भोजपुरी में भी लगातार प्रकाशित हो रही हैं। आप 'किसलय' साहित्यिक पत्रिका के सहायक संपादक भी हैं। " मैं शब्द, अर्थ, भावों का सामूहिक समर्पण हूँ। अव्यक्त पीर की कथा का, स्नेहयुक्त तर्पण हूँ। पीर-प्रीत जिसकी जितनी उसने उतना देखा है, तो दोष क्या हैं मेरा बोलो मैं तो एक दर्पण हूँ।। "