यादें : आज पुरानी किताब के पन्ने मैंने खोले
यादें फिर से मेरे सामने आकर के खिले
तेरे – मेरे बीच की वो हँसी नज़दीकियाँ
हर पल में याद आ रहाँ वो सुहाना मिलन
तुम्हें देखकर दिल को मिलता था सुकून
देख कर मूजको हर बार तुम मुस्कुराते थे
वो अदाए भी तुम्हारी मुझको ख़ूब भाई
अब नजाने कहा भटक गया मेरा साया
एक वक़्त था जब घंटो से बाते होती थी
आज वक़्त देखो मिनीटो में ही होते बोर
दूरियों में बदलरही अब उनकी खामोशि
पर नजरों की जद्दोजहद अब भी है जारी
मैं ही क़ाबिल न था , कमियाँ होगी मुज़मे
पर हर कमियाँ भी प्यारी थी मुज़े आपकी
तेरी हर बात मेरे लिए रब का फरमान था
मेरी चाहत तुम थी और पाना अरमान था
वक़्त एक जैसा नही होता समज न आया
अपना जिसे समजते थे वो निकला पराया
शायद मेरे हाथो की लकीरों में मिलन नही
कैसे पालेता उनको मैं भी कोई भगवान नही
यही पढ़ते पढ़ते मैंने मेरी रफ्तार मंद कर दी
मुज़मे हौसला न रहा अब और कुछ ली…..
आज यादों की किताब के पन्ने खोले तो…….
✍?️..राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक