ऋषि परंपरा के आरोग्य ज्ञान को डॉ. लाजपत राय ने न्यूरोथेरैपी का वैज्ञानिक स्वरुप दिया : डॉ. कृष्ण गोपाल
नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल द्वारा आज हिंदी भवन में न्यूरोथेरैपी, योग एवं ध्यान विशेषज्ञ श्री रामगोपाल दीक्षित की प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक “न्यूरोथेरैपी द्वारा स्वस्थ जीवन” का लोकार्पण किया. इस अवसर पर केंद्रीय आयुष मंत्री श्री श्रीपाद नाइक तथा न्यूरोथेरैपी के संस्थापक डॉ. लाजपत राय मेहरा तथा श्री रामगोपाल दीक्षित ने न्यूरोथेरैपी और मरीजों को हुए इसके लाभ के बारे में बताया. श्री प्रभात कुमार ने मंच सञ्चालन किया.
इस अवसर पर डॉ. कृष्ण गोपाल ने डॉ. लाजपत राय मेहरा द्वारा विकसित की गयी न्यूरोथेरैपी के अनुभव साझा करते हुए बताया कि मनुष्य के शरीर में समस्याओं को लेकर के कई तरह की थैरेपी विकसित हुई हैं. पिछले दो सौ-ढाई सौ वर्षों में आए ऐलोपेथिक ट्रीटमेंट को लेकर के विश्व में बड़ी भारी जागृति आई है. जिसमें बीमारी पैदा करने वाले कारण को वो औषधि से दूर करते हैं. ज्यादा समस्या आ गई तो ऑपरेशन कर के उस अंग को निकाल कर के बाहर कर देते हैं. उस प्रकार से बहुत से थैरेपीज़ हैं, बहुत सारी ऐसी चिकित्सा विधियां हैं जो दुनिया में काम करती हैं. हमारे देश में भी हैं, उसमें से आयुर्वेद भी है, उसमें से प्रकृतिक चिकित्सा भी है, बहुत से लोग चुम्बकीय चिकित्सा से भी लाभ उठाते हैं.
उन्होंने न्यूरोथेरैपी का सिद्धांत बताते हुए कहा कि सारे शरीर को चलाने वाला एक मस्तिष्क है. मस्तिष्क से निकलने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की नाड़ियां सारे शरीर के अन्दर फैली होती हैं. शरीर का प्रत्येक अंग में संवेदना नर्व के द्वारा ही जाती है. यह नाड़ी तंत्र मस्तिष्क से चलता है,मस्तिस्क से यह शरीर के प्रत्येक अंग में बहुत छोटे-छोटे धागे के रूप में चला जाता है. स्पर्श करने में ध्यान में आता है तो वह नर्वस सिस्टम हमें बताता है. और जब नर्वस सिस्टम फेल हो जाता है तो वो अंग संवेदन शून्य हो जाता है.
उन्होंने कहा कि यह चिकित्सा पद्धति भारत में बहुत हजारों वर्षों से चलती रही है लेकिन लोगों को उसका वैज्ञानिक स्वरूप ध्यान में नहीं था, मेहरा जी ने परिश्रम पूर्वक गहराई से अध्ययन व अभ्यास से इसका प्रयोग करते हुए धीरे-धीरे इसे विकसित किया है. बहुत सारे लोगों के स्पाइन के केसेज देखते हैं तो उसमें ध्यान में आता है ऐक्सीडेंट हुआ, शरीर ऐसा हो गया, ब्रेन से निकलने वाला नर्व जो बैक बोन में से जा रहा है, टूट गया, सारा शरीर बेकार हो जाता है तो शक्ति मसल्स में नहीं हैं, मसल्स को जो शक्ति देता है, उस नर्व सिस्टम में है. इसलिए मेहरा जी ने देखा कि शरीर का चाहे वह लीवर है, चाहे वो किडनी है, चाहे वह स्टमक है, चाहे वह पैन्क्रियाज़ है, चाहे गाल ब्लैडर है, वो यूरिनरी स्टिम है, कोई सा भी सिस्टम है, यह एक नर्व उसमें जा रहा है. नर्व उसको नियंत्रित करता है. इसलिए मेहरा जी ने न्यूरोथेरैपी विकसित की, उन्होंने उसकी जड़ को पकड़ लिया. नर्व को कैसे ट्रीट किया जाए, कैसे हम उसको एक्सरसाइज कराएंगे, किस तरह से हिलाएंगे, डुलाएंगे, मालिश करेंगे, दबाएंगे आदि-आदि, उसका एक विज्ञान, एक साइंस उन्होंने विकसित किया. कहां का नर्व दबाने से कहां का आर्गन रिलेटेड है, इस ऑर्गन का कंट्रोल कहां से है, उसकी उन्होंने पूरी गहरी स्टडी की.
उन्होंने अपना अनुभव बताया कि मणिपुर इम्फाल में संघ के कार्यालय के एक कमरे में मेहरा जी का एक शिष्य न्यूरोथेरैपी का काम करता है. एक महिला जो चल भी नहीं सकती थी, बड़ी मुश्किल से रिक्शे से उतर कर सहारा लेकर आकर वहां लेट गयी, तब बिना किसी दवाई-इंजेक्शन के 15-20मिनट के न्यूरोथेरैपी के ट्रीटमेंट से वो महिला उठकर धीरे कर के घर चली जाती है और 15 दिन के बाद वो रिक्शे में नहीं पैदल आती है. जो उठ नहीं सकते वो उठकर बैठकर काम करने लग जाते हैं. यह आश्चर्यजनक इलाज है, जिसमें बीमारी की जड़ को पकड़ा जाता है, ऐलोपैथी में इसके ऊपर बहुत कम विचार हुआ है. डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने स्वयं अपने बारे में बताया कि दो-ढाई साल पहले उनके भी दोनों घुटनों में दर्द होता था, जिससेचलने में कठिनाई होती थी. उन्हें रामगोपाल दीक्षित जी ने न्यूरोथेरैपी का एक ट्रीटमेंट बताया जिसमें पंजों को कैसे आग-पीछे करना, कैसे दबाना आदि उनसे करवाया गया और मैं पिछले डेढ़ साल से प्रतिदिन, पांच-छह किलोमीटर तेज गति से चलता हूं कोई प्राब्लम नहीं है. इसका श्रेय कहीं न कहीं न्यूरोथेरैपी को और हमारे मेहरा जी को ही है.
उन्होंने सभी से आह्वान किया कि इसको विधा को सभी सीखें और दूसरों को बताएँ, इसका अध्ययन करें. जो बीमार लोग हैं उनको सुझाएं. हम कब तक इतने टैबलेट, एंटीबायोटिक, पेन किलर खाते रहेंगे. हर बार वो एंटीबायोटिक, पेन किलर इनैफेक्टिव हो जाता है तो और हाई पोटेंशी का पेन किलर लाता है. आंखों के सामने आदमी ठीक हो के जा रहा है इस पर विश्वास करें कि न करें. इसलिए मेहरा जी के द्वारा दी गई अपने देश को और विश्व को, सम्पूर्ण मानव समाज को एक अदभुत देन है.
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने बताया की सारे शरीर की शक्ति को यह तंत्रिका तंत्र, नर्वस सिस्टम, ब्रेन चलाता है. पाश्चात्य जगत ने इस पर चिंतन नहीं किया. हमारी ऋषि परंपरा ने इस पर भी विचार किया कि मस्तिष्क को स्वस्थ कौन रखेगा. भारत की जो मनीषा है, प्रज्ञा है, जो आध्यात्मिक परंपरा है, उसने इस मस्तिष्क को भी ठीक रखने का प्रयत्न किया है. इसलिए साधना, ध्यान, प्राणायाम के द्वारा, अपने इस मस्तिष्क को भी अच्छा रखने की एक जो पद्धति बताई गई है, यह चिकित्सा नहीं है, यह तो एक साधना की पद्धति है कि मस्तिष्क को हम कैसे और अच्छा रख सकें. हम किसी के ऊपर किसी प्रकार का कोई दोषारोपण नहीं करते, अच्छी बात है अपना-अपना उन्होंने विज्ञान विकसित किया है, ठीक है, लेकिन उनके लिमिटेशंस हैं, उनकी सीमाएं, बाउंड्रीज हैं, वो इससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. बढ़ेंगे वे तब जब इन सभी चिकित्सा पद्धतियों के बारे में जानेंगे और सबसे अच्छा-अच्छा लेने का प्रयत्न करेंगे. बहुत कुछ अच्छा आयुर्वेद में है, बहुत कुछ अच्छा प्राकृतिक चिकित्सा में है, बहुत कुछ अच्छा न्यूरोथेरैपी में है, बहुत कुछ अच्छा ऐलोपैथी में भी होगा. सभी में से मिलाकर ऐसा विज्ञान विकसित हो सकता है जो मनुष्य की सभी बीमारियों को अच्छी तरह से देख सम्भाल कर उनकी चिकित्सा करे.
मेहरा जी ने इसका नये आयाम दिये हैं, नये-नये शोध इस पर और आवश्यक हैं. जैसे चिकित्सा होती है, वैसे-वैसे वर्तमान के यंत्रों के द्वारा उसको समझना, उसको देखना. एमआरआई, सीटी स्कैन, अल्ट्रा साउंड व नैनो टैक्नोलोजी के जो इन्स्ट्रूमेंट्स हैं इनका ऐलोपैथी से कोई मतलब नहीं है. यह साइंस के है, इनमें फिजिक्स, कैमिस्ट्री का काम है, फिजिक्स, कैमिस्ट्री के वैज्ञानिकों ने इन्हें बनाया है. लेकिन इनका उपयोग सिर्फ ऐलोपैथी करती है. न्यूरोथेरैपी में भी वर्तमान के इन वैज्ञानिक इंस्ट्रूमेंट का अच्छा उपयोग करके हम देखेंगे कि यह बीमारी कैसे ठीक हो रही है. कैसे इसके ओब्जेर्वेशन, रीडिंग्स आ रही हैं. इससे इन चिकित्सा पद्धतियों को बहुत सुन्दर नये-नये आयाम मिलेंगे.
15 दिसंबर को कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आये न्यूरोथेरैपी द्वारा स्वस्थ हुए लोगों तथा इसके विशेषज्ञों ने अपने अनुभव लोगों के समक्ष रखे.