लघुकथा – तलाक
“माँ लेकिन कब तक सहन करूँ, जब भी जयादा बात बड़ती है तो ये हर बार हाथ उठा देते हैं,, हर बार हाथ नही उठाया जाता माँ…..आप माँ हो मेरी आप साथ नहीं दोगी तो कौन देगा माँ”
दामिनी फोन पर अपनी मां को मनाने की पूरी कोशिश कर रही थी अपने पति से तलाक लेने के लिए पर माँ “चार लोग क्या कहेंगे” की दुहाई देकर बेटी को रोक रही थी।
“देख बेटी…… हर परिवार में खटपट चलती है, तुमहारे पापा भी तो ऐसे ही थे न,…. निभाना पडता है, सहना पड़ता है तभी शादी सफल होती है”
दामिनी ने फोन काट दिया और सोचने लगी काश तीन तलाक शब्द हमारे धर्म मे भी होता तो…. जो गुस्से में हाथ उठा सकता है वो तीन शब्द गुस्से मे बोलकर मुझे इस बन्धन से मुक्त भी कर देता जो चाहकर भी नही हो पा रहा।
— रजनी विलगैयां