लघुकथा – बेटा ही चाहिए
महिला दिवस पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ. ममता के उद्बोधन के पश्चात पत्रकार ने प्रश्न किया, ‘‘मैडम, लिंग परीक्षण एवं कन्या भ्रूण के गर्भपात करवाने के कितने केस प्रतिमाह आपके पास आते हैं?‘‘ डाॅ. ममता का उत्तर था ‘‘सर, करीब पचास केस प्रतिमाह आते हैं, पर मैं लक्ष्मी के प्रलोभन में आकर किसी लक्ष्मी की परीक्षण-हत्या नहीं करती।‘‘
दूसरा प्रश्न था, ‘‘दो लड़कियों के पश्चात तीसरी बार गर्भधारण के समय केस आना स्वाभाविक है, आप के आदर्श को सलाम, पर क्या दो बेटों के पश्चात् तीसरी बार बेटी के इच्छुक केस भी आते हैं क्या?‘‘ डाॅ. ममता इस प्रश्न पर आश्चर्य चकित थी, ‘‘सर, रूढ़िवादी संकीर्ण अंधविश्वासी समाज में ऐसा केस आना दुर्लभ है, बेटा ही चाहिए, बेटी को तो मात्र झूठे दिखावे के लिए स्वीकार करने का नाटक ढ़ोंग करते हैं। एक आध प्रतिशत दम्पत्ति ही विशाल हृदय वाले बेटियों केा स्वीकार करते हैं, यह हमारे समाज का एक कड़वा सच है। आईना है।‘‘ पत्रकार निरूत्तर था।