कविता “कुंडलिया” *महातम मिश्र 21/12/2016 अक्सर लोग कहा करें, सबके अलग नशीब कहाँ गरीबी के यहाँ, आए खुशी करीब आए खुशी करीब, रहें उम्मीदें बोझिल रोटी पेट मुरीद, कभी नहि भरते दो दिल गौतम ललक विनोद, वरण करते हैं अवसर ईटें भट्ठे आग, उगलते भी सुख अक्सर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी