राजनीति

  भारत में लोकतंत्र भाग –१

हमारा देश १५ अगस्त १९४७ को आजाद हुआ ।  आम बोलचाल की भाषा में हम ऐसा ही कहते हैं लेकिन शायद यह आंशिक सच हो ।  इसी दिन हमारे देश को एक बहुत बड़ी सर्जरी से गुजरना पड़ा था । हमारे अखंड देश ‘ हिंदुस्तान ‘ को अपने ही कुछ मौकापरस्त नेताओं की बदौलत अंग्रेजों ने बड़ी ही बेरहमी से चीरफाड़ कर दो टुकड़े कर दिए थे । इस सर्जरी में हमारे अविभक्त देश के लाखों लोग मारे गए । पुरा देश लहूलुहान हो गया था ।
एक बहुत बड़े तुफान के बाद और लाखों कुर्बानियों के बाद हमारे देश का पुनः नवनिर्माण हुआ । लगभग पांच सौ पैंसठ से अधिक छोटी बड़ी रियासतों का विलय कराकर हमारे प्यारे भारत देश का निर्माण हुआ । तब शायद सही मायने में हमारा देश आजाद हुआ और इसे आज का यह वर्तमान स्वरुप प्राप्त हुआ ।
१५ अगस्त १९४७ को आजादी की घोषणा के बाद हमारा देश बनने की प्रक्रिया शुरू हुयी । डॉ राजगोपालाचारी के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना हुयी । डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा का गठन किया गया जिसने हमारे देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए भारतीय संविधान की रचना की ।
लोकतंत्र की स्थापना और उसकी रक्षा के लिए  संविधान में जनता को सर्वोपरि रखा गया है ।
२६ जनवरी १९५० को हमारे देश में नवनिर्मित संविधान को लागू किया गया ।
हालिया दंगों से निबटने के साथ ही नयी सरकार को कुछ पाकिस्तान परस्त रियासतों से निबटने का महत्वपूर्ण काम भी करना पड़ा था जिनमें हैदराबाद के निजाम ‘और जूनागढ़ जैसी रियासतें शामिल थीं ।
गरीबी ‘ भुखमरी ‘ और लाइलाज बिमारियों वाले मरीजों की सौगात हमारे देश को विरासत में ही मिली थी । सोने की चिड़िया हमारा देश अब तक सिर्फ पंख नुची लहूलुहान  फडफडाती चिड़िया ही बची थी जिसमें आधी से अधिक आबादी के सीर पर न छत थी और न ही पेट में दाने । देश के अधिसंख्य लोगों की पीड़ा से व्यथित हमारे प्यारे बापू ने तो उनकी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए स्वयं ही अधिक वस्त्र का उपयोग करना छोड़ दिया था और ताउम्र सिर्फ एक धोती पहन कर ही बितायी ।
आजादी के बाद देश के सर्वांगीण विकास के लिए सरकार ने कई योजनायें चलायी । देश में छुआछुत का समूल नाश करने के लिए ‘ अश्पृश्यता कानून ‘ बनाया गया ।
देश नव निर्माण के दौर से गुजर रहा था ।
देश में अनाज की कमी को देखते हुए ‘ हरित क्रांति ‘ कार्यक्रम चलाया गया । इस कार्यक्रम में कृषकों को खेती करने के लिए उकसाया गया । उन्हें जानकारी उत्तम बीज और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराये गए । नतीजा यह रहा कि देखते ही देखते हमारा देश धन धान्य से परिपूर्ण अनाज संग्रह कर कुछ चीजों का निर्यातक बन गया । देश भर में नई नई परियोजनाएं आकार ले रही थीं । कल कारखाने से लेकर बांधों का निर्माण और सडकों का विस्तार बड़े पैमाने पर किया गया । कुर्म गति से ही सही लेकिन लोगों के जीवनस्तर में सुधार लगातार होता रहा ।
१८ मई १९७४ को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में ही हमारे देश में सर्वप्रथम पोखरण में परमाणु बम का भूमिगत कामयाब परिक्षण किया गया । इसके पुर्व में हमारा देश तीन बड़ी लड़ाइयाँ लड़ कर काफी जन धन की हानि उठा चुका था । १९६२ में चीन की धोखेबाजी से पराजय का कड़वा घूंट पीनेवाले हमारे देश ने इससे सबक लेते हुए  १९६५ में पाकिस्तानी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी । तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादूर शास्त्री के ‘ जय जवान जय किसान ‘ नारे के साथ पुरे देश की जनता और राजनितिक दल देश की सुरक्षा आन  बान और शान के लिए एकजुट हो गए । इसी तरह ३ दिसंबर १९७१ को भारत के एयरबेस पर हुए हमले का समापन भारत ने १६ दिसंबर १९७१ को पाकिस्तान के ९३ हजार सैनिकों का समर्पण कराकर किया । उस समय संसद में विपक्ष के नेता श्री अटलबिहारी वाजपेयीजी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिराजी को साक्षात् दुर्गा का अवतार बताकर उनकी तारीफ की थी । वाकई उन्होंने तारीफ के लायक काम भी किया था । अमेरिका जैसी महाशक्ति की धमकियों को नजरअंदाज कर के मात्र तेरह दिनों में पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से की तेरहवीं कर दी और युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा समर्पण कराने का गौरव भारतीय सेना को प्राप्त हुआ ।
ऐसी बहादुर और लोकप्रिय नेता के हाथों देश को आपातकाल का दंश भी झेलना पड़ा और फिर १६ मार्च १९७७ को पूरी दुनिया ने भारत के जनतंत्र की खूबसूरती और ताकत का नमूना देखा । श्रीमती इंदिरा गाँधी को सत्ता गंवानी पड़ी और उनके दल कांग्रेस की इतनी करारी हार हुयी कि उन्हें स्वयं भी हार का सामना करना पड़ा था ।
इन चुनावों के बाद हमारे देश में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी दल को सरकार बनाने का मौका मिला । लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुआई में सभी विरोधी दलों का एक दल में विलय कराकर जनता पार्टी नामका एक नया दल बनाया गया था । जनता पार्टी के जीतने के बाद श्री मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
कई दलों से मिलकर बनी जनता पार्टी की सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और सत्ताईस महीने की अल्प  अवधि में ही जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था । देश की जनता ने आपातकाल के लिए इंदिराजी को माफ़ी देते हुए एक बार फिर उन्हें सत्ता सौंप दी । १९८० में इंदिराजी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली ।
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पंजाब में अपनी जड़ें जमा चुका था । देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने के लिए इंदिराजी ने साहसिक निर्णय लेते हुए सेना को स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई की इजाजत दी जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया गया । इस कार्रवाई ने पंजाब से आतंक वाद का खात्मा कर दिया लेकिन इंदिराजी और देश को इसकी बड़ी किमत चुकानी पड़ी । ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिराजी को इसी कार्रवाई का बदला लेने के लिए उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह और बेअन्त सिंह ने गोलियों से भुन दिया ।
राजनीति से दुर भागनेवाले उनके सुपुत्र श्री राजीवजी को आनन फानन देश का प्रधानमंत्री बनाया गया ।
१९८५ में हुए आम चुनाव में देश की जनता ने राजीवजी को अब तक का सबसे प्रचंड बहुमत देकर पुनः सत्तासीन कराया ।
राजीवजी को ही देश में कंप्यूटर क्रांति का जनक माना जाता है । पंचायती राज की उनकी संकल्पना आज भी नायाब मानी जाती है । सरकार और जनता के बीच से बिचौलियों की भूमिका को ख़त्म करने के लिए उनकी परिकल्पना ही आज आधार के रूप में हमारे पास है । राजीवजी ने ही १९८७ में राम जन्मभूमि मंदिर का ताला खुलवाया था और शायद आम सहमति से वहां भव्य श्रीराम मंदिर भी बन जाता यदि वह स्वयं काल के गाल में न समा गए होते ।
अपने कार्यकाल के दौरान साफसुथरी वाली छवि वाले राजीवजी बोफोर्स दलाली काण्ड से खुद को नहीं बचा सके और १९८९ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा । हमारे देश के लोकतंत्र ने एक बार फिर अपनी ताकत का अहसास कराया था । २ दिसंबर १९८९ को राजीवजी पर आरोप लगानेवाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली लेकिन ग्यारह माह की अल्प अवधि में ही मंडल आयोग की सिफारिशें लागु करने की कीमत उन्हें अपना इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा था । अब बारी थी लोकतंत्र का खुलेआम उपहास किया जाता देखने की । चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी जनता पार्टी  ने सिर्फ ३९ सांसदों के दम पर सरकार बनायी । १० नवम्बर १९९० को श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए । इन्हीं के कार्यकाल में देश को भुगतान संकट से निबटने के लिए अपना ७० टन सोना गिरवी रखना पड़ा था । पेट्रोल पम्प आबंटन में अपने लोगों को वरियता देने का चंद्रशेखर सरकार का कीर्तिमान तो आज भी अजेय है । सिर्फ चार महीने बाद ही  १९९१ में मध्यावधि चुनाव की घोषणा हुयी ।
श्री पेरुम्बदुर में एक चुनावी जनसभा में राजीवजी को लिट्टे के आत्मघाती हमले का शिकार होना पड़ा ।
लेकिन चुनाव नतीजे में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और २१ जून १९९१ को श्री नरसिंह राव भारत के प्रधानमंत्री बने । आर्थिक उदारीकरण से देश की अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने का बड़ा काम करते हुए श्री राव के कार्यकाल में ही शेयर घोटाला हुआ । जिसके नतीजे में नेतृत्व विहीन कांग्रेस को १९९६ के आम चुनाव में एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी ।
सबसे बडे दल का नेता होने के नाते १६ मई १९९६ को श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी भारतीय जनता पार्टी के पहले प्रधान मंत्री बने लेकिन सदन में बहुमत न होने की वजह से मात्र तेरहवें दिन ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा । देश का लोकतंत्र एक बार फिर असहाय दिखाई पड़ रहा था ।
१ जून १९९६ को तीसरे मोर्चे के नेता के रूप में ह द देवेगौडा को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गयी । लेकिन दलिय मतभेद की वजह से २१ अप्रैल १९९७ को इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री बनाये गए । १९ मार्च १९९८ को एक  बार फिर श्री वाजपेयीजी प्रधानमंत्री बने । न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर लगभग २७ दलों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया गया जिसे N D A  नाम दिया गया । बाजपेयीजी के नेतृत्वमें  लगभग तेरह महीने की अल्प अवधि में ही विपक्ष द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने में सरकार फेल रही और मजबूरन बाजपेयीजी को इस्तीफा देना पड़ा ।

 

 

शेष अगले भाग में ……….

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।