कविता: नववर्ष स्वागत
बीते दिनों को अब दो विदाई
नव वर्ष को अब दो बधाई
लम्हे गुजर गये हैं जो बीते
क्या वो कभी आते हैं भाई!
मंगल घड़ी आई है रे भाई
छोड़ो सभी झगड़े ये लड़ाई
मन से मिटा दो शिकवे सारे
मत रखो अब कोई रुसवाई!
भूलो बद्दी अपनाओ अच्छाई
काहे नहीं समझे तू भाई
बेकार के इन धंधों में देखो
तुमने अपनी है उम्र गंवाई!
जागो उठो अब भी रे भाई
शुभ मंगल बेला है यह आई
मन के अपने दीपक जगाओ
दूर करो ये काली परछाई!!!
— डॉ सोनिया