ग़ज़ल
दिल हमारा जलाना नहीं
प्यार मेरा भुलाना नहीं
नज़र से तुम गिराना नहीं
आ गये हो तो जाना नहीं
मुश्किलों से तुझे पालते
बाप माँ को रुलाना नहीं
यूं ही करता हूँ मैं शायरी
मेरा दिल शायराना नहीं
उस शहर का बसिन्दा हूँ मैं
जिस जगह आबुदाना नहीं
भूल जाना मुहब्बत भले
खत को मेरे जलाना नहीं
दरबदर मैं भटकता फिरूँ
मेरा कोई ठिकाना नहीं
दर्द सहना पड़ेगा तुझे
दिल किसी से लगाना नहीं
जा रहे हो तो इतना सुनो
लौटकर फिर से आना नहीं
— धर्म पाण्डेय