नोटबंदी पर सवाल के घेरे में बैंक
विगत दिनों जब केन्द्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया और देश के आम नागरिकों से सबकुछ ठीक करने हेतु 50 दिनों की मोहलत मांगी तो देश का अधिकतर नागरिक तमाम मुश्किलों के बावजूद सरकार के साथ खड़ा दिखा । हर दिन स्थिति का मूल्यांकन करते हुए लगातार नियम में परिवर्तन होता रहा और ऐसा महसूस होने लगा कि थोड़ा वक्त अधिक जरूर लग रहा हो लेकिन सरकार इसमे सफल हो जाएगी । सरकार ने हर बार की तरह अपने बैंक और उसके कर्मचारियों पर भरोसा दिखाया । नोटबंदी के कार्यान्वयन की सारी जिम्मेदारी देश के सभी बैंको को दी गई । रिजर्व बैक सहित देश के सभी बैंक इस काम में लग गए । लगा जैसे बस थोड़ी सी मुश्किल है धीरे धीरे सब कुछ समान्य हो जाएगा । लेकिन अब तक अधिकतर ए टी एम पर नो कैश के बोर्ड ने आम जनता को मुश्किल में डाल दिया । सरकार ने वादा किया कि नोट के छापने का काम बहुत तेजी से चल रहा और दिए गए 50 दिन में सबकुछ पटरी पर आ जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं । जितने रूपये बैंक में वापस किए गए उसका बहुत कम प्रतिशत नोट ही सरकार जारी कर पाई । नोट की किल्लत का आलम यह है कि आम लोग अपनी जरूरत से कहीं अधिक रूपए का निकासी कर घर में जमा कर लिए जिससे उस रूपए के बाजार का रोटेशन तो बंद हुआ ही साथ बैंक द्वारा एक टी एम में रूपए डालने के कुछ घंटे बाद ही नोट खत्म होता रहा जिससे बहुत सारे जरूरतमंद लोग रूपए की निकासी चाह कर भी नहीं कर पाए ।
सरकार आम नागरिकों के लिए एक हफ्ते में 24000 रूपए एक बार निकासी का नियम बना तो दिया लेकिन अधिकतर बैंक अपने ग्राहकों को एकमुश्त इतने रूपए देने में असक्षम रही जिस कारण सरकार को उच्चतम न्यायालय की तीखी टिप्पणी का उत्तर देना पड़ा । लेकिन इन सारी मुश्किलों के बावजूद केन्द्र सरकार को एक दो स्थान पर ही जनता के विरोध का सामना करना पड़ा । देश हित में देश के अधिकतर नागरिक की यह सोच रही कि काला धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद की फंडिंग रोकने हेतु यह कदम बहुत आवश्यक है ।हर किसी को इस बात की खुशी थी कि थोड़ी मुश्किल के बावजूद अगर देश हित में यह कदम आवश्यक है तो इसका समर्थन किया जाना चाहिए । साथ साथ इस बात का भी इंतजार था की हालत धीरे धीरे सुधरेगी और नोट की किल्लत भी खत्म हो जाएगी ।
लेकिन इस अभियान को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब पुराने नोट के साथ नये नोट बहुत अधिक मात्रा में पकड़े जाने लगे । चिंता का विषय यह भी है कि नये नोट किसी एक स्थान से नहीं अपितु देश के अलग अलग हिस्से से पकड़े जा रहे है । अगर एक आँकड़े की माने तो अब तक आयकर विभाग में अलग अलग स्थान पर छापा मारकर दिसंबर के दूसरे हफ्ते तक तकरीबन 15 करोड़ रूपए के नये नोट बरामद किये है । जिसमे अकेले चेन्नई में तकरीबन 10 करोड़ के नये नोट बरामद किए गए है और ऐसे ही देश के अलग अलग हिस्सों से लगातार नये नोट के बरामदगी की सूचना मिल रही है । ऐसे में संदेह के घेरे में सिर्फ तीन संस्था आती है जिसमे सबसे पहला नाम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का है। दूसरे स्थान पर देश के सभी बैंक और तीसरे स्थान पर वो एजेंसियाँ है जिन पर ए टी एम में रूपए डालने की जिम्मेदारी है ।
सवाल उठता है कि काले धन कुबेरों के रूपए को इतने बड़े पैमाने पर बदलने और उनके घर तक पहुंचाने का काम कौन कर रहा है ? अगर बैंक आम नागरिक को हर हफ्ते सिर्फ 24000 रूपए नहीं दे पा रही और अधिक्तर ए टी एम पर कैश अब तक नियमित रूप से नहीं पहुंच रहा तो आखिर बैंक इतनी बड़ी राशि का नया नोट काला धन कुबेर को कैसे मुहैया करवा रही है ? अगर बैंक के पास नये नोट उतने अधिक मात्रा में उपलब्ध नहीं तो इस काले काम में क्या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया खुद ही शामिल है ? क्या ए टी एम तक रूपए पहुचाने वाली एजेंसियाँ इस खेल में शामिल है ?
ये कुछ सवाल आज कैश की किल्लत से जुझ रहे हर एक नागरिक के जेहन में घुमड़ रहा है ।
आयकर विभाग के छापे के बाद सबसे अधिक जिस बैंक पर फर्जीवाड़ा का आरोप लगा रहा है वो है ” एक्सिस बैंक ” हलांकि एक्सिस बैंक लगातार इन आरोपो का खण्डन करती आ रही है लेकिन एक्सिस बैंक पर आयकर विभाग के लगाए आरोप और कुछ कर्मचारियों का निलंबन इस बात के पुख्ता सबूत देता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ी तो हुई है । एक्सिस बैंक पर उठा सवाल देश के बाकी बैंकों को भी संदेह के दायरे में खड़ा करता है ।
लेकिन जो सबसे अधिक चिंताजनक है वो है रिजर्व बैंक पर उँगली का उठना । विगत दिनों सीबीआई ने पुराने नोटो को नए नोटों से बदलने के आरोप में रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के दो अधिकारियों को गिरफ्तार किया है तथा इससे पहले भी सीबीआई रिजर्व बैंक के अधिकारी माईकल को गिरफ्तार कर चुकी है ।आरोप है कि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के चेस्ट से 1.99 करोड़ के पुराने नोट ने नोट से बदले गए । विचार करने वाली बात यह है कि अगर रिजर्व बैक स्वयं ही अगर इन आरोपो से घिरी है तो बाकी बैंकों के विश्वसनीयता पर सवाल उठना तो जायज है , क्योंकि नोट के छापने का निर्णय भले ही केन्द्र सरकार का सहमति से लिया जाता है लेकिन अधिकारिक तौर पर इसकी जिम्मेदारी रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के पास ही होती है । इतना ही नहीं देश के सारे बैंक रिजर्व बैंक के निर्देश का ही अनुसरण करते है ।
अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो केन्द्र सरकार द्वारा लिया गया एक शानदार फैसला उसके कार्यान्वयन और रिजर्व बैंक और बाकी कुछ बैंक के भ्रष्टाचार का शिकार हुआ है । जिसने इस फैसले की महत्ता को निसंदेह कटघरे में खड़ा कर दिया है । हलांकि एक सकारात्मक पक्ष यह है कि आरोपी लगातार पकड़े जा रहे लेकिन लगातार हो रहे घटना क्रम से जहाँ एक ओर बैंक की विश्वसनीयता।कमती जा रही है वहीं इसके कार्यान्वयन में कहीं न कहीं कोई भारी चुक हुई है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है ।
अमित कु.अम्बष्ट ” आमिली “