ग़ज़ल
सच कहने का मूल्य चुकाना पड़ता है।
कांटों में भी राह बनाना पड़ता है ।
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अंधेरे से जंग छेड़ दी जब मैं मैंने
पता इसमें जल जाना पड़ता ।
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सच्चाई घाटे का सौदा है यारों
बंदर को आइना दिखाना पड़ता है।
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शर्म बेचकर खा ली दुनिया वालों ने
अब इज्जत को नजर झुकाना पड़ता है ।
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अवसरवाद ने अवसर पर यह सिखा दिया
गदहे को गुरुदेव बताना पड़ता है।
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कुछ अपनों की राहें रोशन करने को
यारों कोई ख्वाब जलाना पड़ता है ।
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी