धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

नज़र नही, नज़रिया बदलिए

वास्तव में हम सबके पास प्रभु प्रदत्त अतुलनीय सुन्दर काया और अद्वितीय चिन्तनशील मस्तिष्क है. इसके लिए हम सबको उस परमपिता परमेश्वर को शुक्रिया अदा करना चाहिए. जीवन, मरण, यश, अपयश यह सब तो निश्चित ही है, परन्तु जरा विचार कीजिए कि हमारा जन्म माँ भारती के इस पावन गोद में ही क्यूँ हुआ ? पृथ्वी के अन्य सुदूर देशों में भी तो हो सकता था? पल हरपल भौतिकता की होड़ में स्वयं को अग्रसित पाने हेतु हम लोग अपना एक एक बहुमूल्य पल व्यतीत करते जा रहे हैं. मगर क्या हमने कुछ वक्त निकालकर इस पर विचार किया कि जो भी पल व्यतीत हो रहा है, इसका हम कितना सार्थक उपयोग कर रहे है ? आखिर ऐसा क्यूँ होता है कि हममें से ही कुछ लोग अपने सीमित जीवनकाल में प्रतिपल का सदुपयोग करके माँ भारती के गौरव का परचम लहराकर अपने किए हुए कार्यों को आदर्श रूप में समाज के सामने प्रस्तुत कर जाते हैं ? मगर अधिकतर लोग इस जीवन के मर्म को समझ तक भी नहीं पाते हैं.

गौरतलब है कि जीवन की सार्थकता और दूरदर्शिता से जुड़े अधिकांश सवालों का जवाब ढ़ूढ़ने पर अधिकतर लोग परिस्थितियों को दोषी ठहराकर आसानी से सही जवाब देने से बच निकलते हैं. कुछ एक लोग ऐसे भी मिलते है जो अधिकतर बातों को जानते तो है मगर स्वयं को उसके अनुरूप ढ़ाल नहीं पाते. हमें उन लोगों पर गर्व है, जो लोग लोक-लज्जा, घृणा, कुविचार, व्यसन, लोभ को त्यागकर अपने प्रतिपल का सदुपयोग करके मानव, मानवता व माँ भारती के अखण्ड़ सेवक बनकर सतत् आगे बढ़ते जाते है. हममें और उनमें फर्क इतना ही है कि वो दूरदर्शिता और सुविचारों के माध्यम से जीवन के मर्म को समझ लेते है और हम अधकचरी लोलुप भौतिकता में मशगूल होकर अपना सारा जीवन गवाँ बैठतें हैं.

विशेष ध्यातव्य है कि यदि हमें इतिहास रचना है तो अपने अवचेतन मन में पागलपन और जिद के कुछ बीज बोने ही पड़ेंगे. कोई भी इंसान जन्म से ही विद्वान और आदर्श नहीं रहता और यदि ऐसा हो जाए तो वह पहले से ही पूर्ण हो जाएगा, फिर तो जीवन में कुछ नया करने की इच्छाशक्ति जागृत होगी ही नही. आपने शिक्षा प्राप्त की है या नहीं ?, धनार्जन किया है या नहीं ?, खुशियाँ समेंटी है या नहीं ?…अब तक आपके साथ क्या हुआ उन सबको छोड़िए, आज से आप एक नई स्फूर्ति के साथ कुछ कर गुजरने की ठान लीजिए. सच मानिए, जैसै जैसे आपके कदम बढ़ते जाएगें, वैसे वैसे आपको एक असीम संभावनाओं वाला संसार नजर आने लगेगा, खुशियाँ दिन दूना रात चौगुना मिलती जाएगी, अनन्त ऊर्जा खुद-बखुद आप में समाहित होती जाएगी. बस आपको स्वयं पर विस्वास रखकर यह अच्छी तरह से जान लेना है कि सपने साकार करने के लिए जिन चीजों की जरूरत है, वह सब आपके पास मौजूद है.

एक बार एक गाँव में बूढ़ा बैल भटकते भटकते कुएँ में आ गिरा. उसकी मर्म अवाज सुनकर लोग कुएँ तक आते और देखकर चले जाते. उसकी बुढ़ापी अवस्था को देखकर कोई उसको निकालने के लिए सोचता भी नहीं था क्योंकि अब वह उपयोग में लाए जाने योग्य नहीं था, बैल लगातार भूख प्यास से व्याकुल होकर चिल्लाता रहा. धीरे धीरे उसकी आवाज धीमी पड़ती गई. अन्ततः गाँव के मुखिया ने उसको निकालने के बजाय कुएँ में ही दफनाने का निर्णय लिया. मुखिया ने सभी गाँव वालों को फावड़ा लेकर कुएँ के समीप एकत्रित किया. लोग उस कुएँ में एक एक फावड़ा मिट्टी ड़ालने लगे. मिट्टी ड़ालते ड़ालते कुआँ तकरीबन भरने वाला था तभी किसी की निगाह कुएँ में गई तो बैल तो दबा ही नहीं था बल्कि वह ऊपर आ चुका था. जैसे जैसे लोग कुएँ में फावड़े से मिट्टी ड़ाल रहे थे, वैसे वैसे बैल पीठ हिलाकर मिट्टी छाड़कर एक कदम आगे बढ़ जाता था. जैसे ही कुआँ भरने की कगार पर था तो बैल अचानक कूदकर बाहर आ गया. लोग इस वाकये को देखकर दंग रह गए.

कहानी का निष्कर्ष यह है कि दुनियाँ में अधिकतर लोग आपको निरर्थक समझकर आप पर कीचड़ उछालेंगे, पथभ्रष्ट करेंगे, दबाने का प्रयास करेंगे, यहाँ तक कि आपको गर्त में ढ़केल देंगे. मगर आपको इन कठिनाइयों से गुजरकर कदम दर कदम आगे बढ़ते ही जाना है. परिस्थितियों पर रोना छोड़ना पड़ेगा. एक नई स्फूर्ति, दूरदर्शिता और खुले मस्तिष्क से स्वयं को सत्कर्म हेतु न्यौछावर करना ही होगा. आपको अपार खुशियाँ, अनन्त ऊर्जा और एक नई दुनियाँ मिलेगी, जिसकी आपने अभी तक कल्पना भी नहीं की होगी.

हम गौर करें तो पाएगे कि वर्तमान परिप्रेझ्य में अपार सम्भावनाएँ हैं. मगर आवश्यकता उनको शीघ्र समझकर अपनी सम्पूर्ण सार्थक ऊर्जा सत्कर्मों के निमित्त न्यौछावर करने की है. मुख्यतः हमें अपने चारो ओर एक सकारात्मक माहौल बनाते हुए बढ़ते जाना है. हाँ यह जरूर है कि थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है मगर सफलता जरूर मिलेगी.

उपरोक्त परिप्रेझ्य में कुछ आवश्यक बिन्दु निम्न हैं-
1 – आत्मचिंतन करें एवं स्वयं को समझें.
2 – स्वयं के प्रति इमानदार बनें.
3 – पुस्तकों को मित्र बनाएँ.
4 – समय की उपयोगिता समझें.
5 – लझ्य निर्धारित करें.
6 – प्रत्येक छण को अन्तिम छण समझकर जियें.
7 – असफलता से सीख लें.
8 – कुसंगति, व्यसनों और कुविचारों से बचें.
9 – आन्तरिक चेतना जागृत करें.
10 – आधुनिकता के साथ साथ अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति को समझें.

शालिनी तिवारी

अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है । [email protected]