कविता

मानव जीवन अनमोल है

मानव जीवन अनमोल है करो इसका सम्मान,
गुजरने वाला एक एक पल है बड़ा मूल्यवान।
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कुछ भी बनने से पहले बन एक अच्छा इंसान,
मृत्यु लोक में अमर हो जाये बना ऐसी पहचान।
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ये जीवन फिर नहीं मिलेगा रखना इसकी शान,
संकट के घड़ी में भी रखना मुख पर मुस्कान।
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अभी जमीं भी नहीं मापा बाकि है आसमान,
साहिल को छूना है तुम्हें चीरकर ये तूफान।
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कर्मवीर हर नामुमकिन को कर देते आसान,
अपने हाथों से लिखते हैं किस्मत की दस्तान।
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तुम कर्मवीर के वंशज हो जगा तू स्वाभिमान,
मंजिल तक पहुंचने का बना खुद ही सोपान।

– दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।