भीख
अमर और रजनी कुछ खरीददारी के लिए बाजार से गुजर रहे थे । मैले कुचैले और गंदे से कपडे पहना एक बालक अचानक रजनी के सामने आ गया और उसका रास्ता रोकते हुए याचना करने लगा ” आंटी ! एक रुपये दो न ! बहुत भुख लगी है । ”
रजनी ने अपना पर्स खोला और उसे एक रूपया देने जा रही थी कि अमर ने उसे इशारे से मना किया और उसे लेकर सामने ही छोले भटूरे बेच रहे रेहड़ी वाले से एक छोला भटूरा लेकर उसके नन्हें हाथों में थमा दिया । वह बालक ख़ुशी से कुलांचे भरता सामने ही भीड़ में खो गया ।
रजनी ने अमर से कहा ” करा दिया न आपने दस रुपये का नुकसान और इतना समय लगा ऊपर से । एक रुपये देकर छुट्टी पा लेना चाहिए था । ”
अमर रजनी को समझाने के लहजे में बोला ” रजनी ! आगे से ध्यान रखना ! कभी किसी बच्चे को भीख नहीं देना । इन्हें भीख देकर हम इनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी करते हैं । ”
” आप कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हैं । भीख देने से इनके साथ नाइंसाफी कैसे हो गयी ? ” रजनी ने हैरत से कहा ।
मुस्कुराते हुए अमर ने जवाब दिया ” रजनी ! जरा अपनी अकल का इस्तेमाल भी कर लिया करो ! इतने छोटे बच्चे को पैसे की अहमियत क्या पता ? ये अपने मन से भीख नहीं मांगते । इनसे जबरन भीख मंगवाया जाता है । कभी इनके निकम्मे शराबी और अपराधी माँ बाप इनसे भीख मंगवा कर उनसे अपनी गलत जरूरतें पुरी करते हैं तो कहीं कहीं यह बहुत ही संगठित तरीके से कुछ अपराधी तत्वों द्वारा इसे शुद्ध व्यावसायिक तरीके से कराया जाता है । लोग तरस खाकर इन बच्चों को या लूले लंगड़े अंधे को मदद के नाम पर भीख देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं जबकि हकीकत इससे ठीक उलटी है । चूँकि इन्हें ज्यादा भीख मीलती है अपराधी तत्व मासुम बच्चों का अपहरण व चोरी करके इन्हें यातनाएं देकर इनसे भीख मंगवाते हैं हम यह समझ कर इन्हें भीख देते हैं कि इनका भला होगा लेकिन इसके विपरीत इन्हें रुखी सुखी देकर ये अपराधी तत्व अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं । इस तरह इन बच्चों की कमाई से अपराध फलता फूलता है । इनमें से कुछ गिरोह बच्चों से बड़ी क्रूरता से पेश आते हुए ज्यादा कमाई की लालच में उन्हें बड़ी निर्दयता से अपाहिज या अँधा बना देते हैं । अगर सभी लोग मील कर यह ठान लें कि हमें इन्हें भीख नहीं देनी है तो कुछ ही दिनों में इन अपराधियों की कमाई ख़त्म हो जाएगी और शायद भीख मंगाने के लिए बच्चों के अपहरण की घटनाएँ कम हो जाएँ । तब शायद इन बच्चों का बचपन बच जाये । अब समझ में आया कि इन्हें भीख देकर हम इनपर अन्याय ही करते हैं । ”
रजनी ने सहमति में सीर हिलाया और बोली ” आप बिलकुल सही कह रहे हैं । इस तरह से तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था । हमेशा ही मानवीय पहलु का ध्यान रखा । अब कभी किसी को नगद भीख नहीं दूंगी । ”
दृढ निश्चय की लकीरें रजनी के चेहरे पर वहीँ उसे समझा पाने के बाद अमर के चेहरे पर संतोष की लकीरें स्पष्ट दिख रही थीं ।