गज़ल
मुहब्बत की दिल में इबारत लिखी है
फ़क़त प्यार की ही तो चाहत लिखी है।
करेगा जिसे याद सारा जमाना
बड़ी खूबसूरत सी आदत लिखी है ।
उठी बीच रिश्तों के दीवार देखो
दिलों में ये कैसी सियासत लिखी है ।
मिली बेवफ़ाई हमें तो सदा ही
मगर फिर भी हमने तो उल्फत लिखी है ।
उठी उँगलियाँ इस जमाने की हम पर
क़लम नें कभी जो हकीकत लिखी है ।
भले नफ़रतें पाईं हमनें सभी से
मगर सबकी खातिर मुहब्बत लिखी है ।
फ़ना होके करती जो औरों को रोशन
खुदा शम्आ की भी क्या किस्मत लिखी है ।
वो है तन का उजला मगर मन का काला
कि नीयत में उसके बगावत लिखी है ।
शराफत हो दिल में भले ही हमारे
निगाहों में लेकिन शरारत लिखी है।
अमन की हो बातें लबों पर सभी के
“रमा” एक छोटी सी हसरत लिखी है।
— रमा प्रवीर वर्मा