नहीं मिलता
हमको अपना पता नही मिलता,
कोई घर भी खुला नही मिलता।
सिर्फ सरगोशियाँ सी सुनती हूँ,
मुझमें आया गया नही मिलता।
यां तो दिल ही जलता रहता है,
तम को जलता दिया नही मिलता।
मिलके उससे उसी में खो जाऊँ,
पर वो मुझसे जुदा नही मिलता।
हाल अपना किसे सुनाये हम,
दिल किसी से जरा नही मिलता।
ढूंढती रहती हूँ किसे खुद में,
कोई मुझमें छुपा नही मिलता।
सब्र थोड़ा “शरर” रखो कायम,
अब वफ़ा का सिला नही मिलता।
अल्का जैन ‘शरर’