कविता “कुंडलिया” *महातम मिश्र 29/12/2016 पाई पाई काट के, राखी चिल्लर जोड़ किल्लत की थैली लिए, उम्मीदों के मोड़ उम्मीदों के मोड़, बड़ी मुश्किल से मुड़ते भरे न भूखे पेट, कहाँ से नोट निकलते गए गौतम बिखराय, गुलक्का नोट पराई नहीं निगलते माल, जहां दुख पाई पाई॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी